नई दिल्ली: कनाट सर्कस के मुक्तधारा ओडिटोरियम में नव वर्ष के उपलक्ष्य में एक 'राष्ट्रीय कवि सम्मेलन' का आयोजन महेंद्र चौहान के संयोजकत्व में हुआ. संचालन सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार-कवि संजय जैन ने किया और अध्यक्षता सुप्रसिद्ध गीतकार डा जयसिंह आर्य ने की. काव्य पाठ करने वाले प्रमुख कवियों में आलोक यादव, प्रो राम, नमिता राकेश व सरिता गुप्ता शामिल थे. कवि सम्मेलन में चीन-भारत युद्ध पर भारतीय जवानों की वीरता पर महेंद्र चौहान की कविता ने जहां राष्ट्र भक्ति का संचार किया, वहीं संजय जैन की 'मां' कविता ने सबको भावविभोर कर दिया. डा आर्य ने नव वर्ष पर अपने दोहे में सुनाया-
सर्दी का आतंक है, जन-गण-मन बेहाल
देखो चलकर आ गया, ठिठुर ठिठुर कर साल…
श्रोताओं की फरमाइश पर उन्होंने अपना चर्चित गीत, रुकजा रुकजा रे मणिहार चूड़ी मैं भी पहनूंगीं, कल को आएंगे भरतार चूड़ी मैं भी पहनूंगी; सुनाया तो तालियों की गड़गड़ाहट से हाल गूंज उठा. नागरिकता संबोधन बिल और पत्थरबाजों पर उनका काव्यमयी आक्रोश यों था-
मेरा भारत एक राष्ट्र है
कोई रेत का टीला नहीं
कि कोई भी आंधी आए
और इसे उड़ा कर ले जाए.
ये देश उन जवानों का है
जिन्होंने हवाओं के रुख बदले हैं.
ये देश उन शहीदों का है जो शम्मे आजादी पर परवाना बनके मचले हैं.
मत बनो जयचंद
बनना है तो बनो पृथ्वीराज चौहान.
बनोगे चौहान तो सदियां तुम्हारे नाम को पूजेंगी,
बनोगे जयचंद तो पीढ़ियां तुम्हारे नाम पे थूकेंगी.
कवि सम्मेलन की सफलता पर आयोजक समिति के चेयरमैन वीरेंद्र महाजन व संरक्षक अरविन्द सिंघल ने सभी अतिथियों, कवियों व श्रोताओं का आभार व्यक्त किया.