मुंबई: मुंबई सिर्फ सपनों की नगरी नहीं है, वह वाणिज्य-व्यापार, कला, सिनेमा की नगरी भी है, इसीलिए उसे मायानगरी भी कहते हैं. साहित्यिक प्रतिभाओं को काम देकर जिलाने की इसकी भूमिका सराहनीय ही नहीं, स्तुत्य भी है. महानगर के भीतर की दूरियां बाधक होते हुए भी यहां के साहित्यकार एक दूसरे से मिलने का मौका निकाल ही लेते हैं. गोकुलधाम में इसी उद्देश्य को लेकर एक नई संस्था 'काव्य बेला' का जन्म हुआ, जिसमें प्रतिमास अतिथि रचनाकारों के सम्मान में काव्य गोष्ठी हुआ करेगी.
मुंबई के साहित्यकार किरण मिश्र की पहल पर ओएनजीसी से जुड़े रवीन्द्र मिश्र के आवास पर हुई इस प्रथम गोष्ठी में रास बिहारी पांडेय, रेखा बब्बल, नीलम दीक्षित, वनमाली चतुर्वेदी, कुसुम तिवारी आदि ने हिन्दी के साथ-साथ भोजपुरी, अवधी, ब्रज और मैथिली में कविताएं प्रस्तुत कीं. इस संगोष्ठी में विशेष तौर से उपस्थित प्रतिष्ठित गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का मानना है कि इस गोष्ठी में पढ़ी गईं रचनाएं सामान्यतौर पर कवि सम्मेलनों में पढ़ी जानेवाली रचनाओं से अधिक जीवंत और स्तरीय थीं.