नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने अकादमी परिसर में संस्कृत साहित्य के प्रकांड संत रामानुजाचार्य की 1000 वीं जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया. उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादमी के सचिव डॉ के श्रीनिवासराव ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि "यतिराज, यानी रामानुजाचार्य निर्विवाद रूप से मंदिर पूजा प्रणालियों के सबसे बड़े सुधारक व वैदिक धर्म के सबसे महान आचार्यों में से एक हैं. वह एक संत थे, जिन्होंने पूरे भारत में भक्ति परंपरा का प्रसार और प्रसार किया. उन्होंने जो बीज बोए उससे कई मध्ययुगीन आंदोलन अंकुरित हुए. वह एक ऐसे उद्भट विद्वान थे, जिनका प्रभाव आज 1000 साल बाद भी महसूस किया जाता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि श्री रामानुज का असाधारण काम समय के साथ और भी आगे बढ़ा और अन्य क्षेत्रों में फैला. अपने उद्घाटन संबोधन में अनंतश्री विभूषित श्रीमद जगत्गुगु रामानुजाचार्य 'विद्याभास्कर' ने कहा कि शेषावतार श्रीरामानुचार्य एक महान संत थे और उनका प्रभाव एक या कुछ विशेष समुदायों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि आज भी जनता के बीच महसूस किया जाता है. उन्होंने प्रसिद्ध विशिष्टद्वैतदर्शन की स्थापना की, जिसे भारतीय दर्शन के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक विद्यालयों में से एक माना जाता है. उन्होंने कहा कि श्रीरामानुजाचार्य द्वारा रचित श्रीभाष्यम सबसे महान साहित्यिक प्रस्तुतियों में से एक है, जो वैदिक ज्ञान के शाश्वत रहस्य को प्रकट करता. एक प्रभावशाली विचारक के रूप में उन्होंने भक्ति परंपरा के प्रचार के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया. उन्होंने आत्म-प्राप्ति के लिए भक्ति और ज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर विशेष जोर दिया.

मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान प्रोफेसर सत्यव्रत शास्त्री ने कहा कि भारत ने सदियों और सहस्राब्दी में जो उल्लेखनीय व्यक्तित्व पैदा किए , उनमें महान संत और दार्शनिक श्री रामानुजाचार्य भी शामिल थे, जिन्होंने देश के सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक हलके में एक अद्वितीय जगह बनाई. वह धर्म से जनता तक पहुंचे. उन्होंने वेदों और उपनिषदों की अंतर्दृष्टि को सुसंगत बना दिया. अपने मुख्य वक्तव्य में प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान एमए अलवर ने रामानुजाचार्य की शिक्षाओं की दार्शनिक विशिष्टताओं पर जोर दिया और कहा कि वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अद्वैत और द्वैत दोनों को समेट लिया और विशिष्टद्वैत स्कूल की स्थापना की. समापन संबोधन में साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ माधव कौशिक ने न केवल धर्म के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में भी रामानुजाचार्य की शिक्षाओं पर विशेष जोर दिया, जिन्होंने अपनी दार्शनिक उपलब्धियों के बावजूद उत्पीड़ित लोगों के लिए काम किया, उन्हें अपने साथ लिया और मोक्ष का मार्ग दिखाया. इस अवसर पर  श्री रामानुजाचार्य पर एम नरसिम्हाचारी द्वारा लिखित मोनोग्राफ का अनुवाद संस्कृत, हिंदी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, मैथिली और डोगरी भाषाओं में जारी किया गया. अगले दो सत्र, '21 वीं शताब्दी में श्री रामानुजाचार्य की प्रासंगिकता' और 'श्री रामानुजाचार्य और मध्ययुगीन आंदोलन' की अध्यक्षता जे श्रीनिवास मूर्ति और अभिराज राजेंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में हुई. इस संगोष्ठी में देश भर के संस्कृत अध्येता, शिक्षाविद और साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.