नई दिल्लीः भारतीय नवजागरण में बौद्ध विचार को विकसित और विवेचित करने वाले विचारकों में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर का नाम अग्रणी है. वह बुद्ध, जीसस, कृष्ण और मोहम्मद के बीच बुद्ध को सबसे बड़ा विचारक, चिन्तक और दुनिया के पहले शिक्षक के रूप में याद करते हैं. यह कहना था, समीक्षक और वक्ता मनोज कुमार सिंह का. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रभाकर सिंह के सहयोग से वाणी प्रकाशन की डिजिटल शिक्षा शृंखला के तहत 'हिंदी साहित्य का इतिहास: अध्ययन की नयी दृष्टि, विचारधारा और विमर्श' व्याख्यानमाला जारी है. इस व्याख्यानमाला के दूसरे पड़ाव में बीएचयू के अध्यापक मनोज कुमार सिंह ने शिरकत की और 'हिंदी साहित्य और बौद्ध विचार परम्परा' विषय पर अपने विचार रखे. उन्होंने महात्मा बुद्ध को दुनिया का पहला संवादी शिक्षक बताया. सिंह का कहना था कि महात्मा बुद्ध ने न केवल वर्णाश्रम व्यवस्था को प्रश्नांकित किया बल्कि कई ऐसे सवाल खड़े किए जिनके बारे में सोचा भी नहीं गया था. उन्होंने महात्मा बुद्ध को धर्म में नैतिकता की चेतना को विकसित करने वाले, पुस्तक को प्रमाण ना मानने वाले, जीवन से सच को ग्रहण करने वाले, जीवन में व्याप्त दुख की संरचना को समझने वाला बताया.
सिंह ने दावा किया कि हिंदी समाज में जीवन के सच को समझने की पहली बौद्धिक कोशिश बुद्ध ने की. प्रोफेसर सिंह आश्चर्य प्रकट किया कि हिंदी साहित्य और समाज में आठवीं शताब्दी की सिद्ध कविता और भक्तिकाल में निर्गुण कविता का बौद्ध विचार परम्परा से गहरा रिश्ता है. लेकिन आधुनिक काल में हिंदी नवजागरण का बौद्ध साहित्य के साथ वैसा रिश्ता नहीं बन पाता. वैसे आचार्य रामचंद्र शुक्ल, प्रोफेसर रामविलास शर्मा ने बौद्ध दर्शन और विचार पर लिखा तो है, लेकिन उसका सार्थक विवेचन इनके यहाँ नहीं मिलता. हां, यह अवश्य है कि हिंदी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन ने बौद्ध विचार परम्परा से गहरा रिश्ता कायम किया. सिंह का कहना था कि हिंदी साहित्य में कविता और कथा साहित्य में बौद्ध जीवन या बुद्ध के जीवन चरित्र को तो लिया गया है लेकिन बुद्ध के विचारों के साथ हिंदी समाज में जैसा रिश्ता कायम करना चाहिए वैसा नहीं किया है, यह बात विचार योग्य है.