नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने आज राजभाषा मंच कार्यक्रम के अंतर्गत प्रख्यात लेखक प्रेमपाल शर्मा के व्याख्यान का आयोजित किया, जिसमें शर्मा ने 'महात्मा गांधी और भारतीय भाषाएं' विषय पर अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा कि हमने भाषा के प्रश्न पर गांधी को अभी तक क्यों नहीं याद किया है? गांधी ने भाषा की जिस ताकत को पहचाना, ऐसा पिछले 100 सालों में कोई नहीं कर पाया. उन्होंने गांधी के जीवन को विभिन्न उदाहरणों से यह सिद्ध किया की महात्मा गांधी ने भारतीय भाषाओं के महत्त्व को बहुत पहले समझ लिया था और उसके लिए लगातार संघर्ष करते रहे. यह दुखद है कि उनकी भाषा नीति को आगे जाकर किसी ने राजनीतिज्ञ ने महत्त्व नहीं दिया. केवल डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने जरूर उनकी बात को आगे बढ़ाने की कोशिश की.
शर्मा ने भाषा के प्रश्न को शिक्षा से जोड़ते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा के भारतीय भाषाओं में न होने के कारण हम प्रतिभा पलायन की समस्या से तो जूझ ही रहे हैं बल्कि बहुत सी प्रतिभाएं इस कारण आगे नहीं आ पा रही हैं. उन्होंने शिक्षा से जुड़े सभी लोगों से अपील की वे कोठारी आयोग की महत्ता को समझते हुए ज्यादा से ज्यादा प्रतियोगी परीक्षाओं को भारतीय भाषाओं में आयोजित करने का संकल्प लें. उनके व्याख्यान के बाद उपस्थित श्रोताओं से उनसे प्रश्न पूछें और संबंधित विषय पर अपनी टिप्पणियां भी प्रस्तुत कीं. कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं के लिए कार्य कर रहे बहुत से महत्त्वपूर्ण लोग उपस्थित थे, जिनमें राकेश पांडेय, हरीपाल सिंह, अनिल आदि शामिल हैं. कार्यक्रम का संचालन अकादमी के संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया. साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव भी कार्यक्रम में मौजूद थे.
