नई दिल्ली: स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति के प्रतीक पुरुष हैं. उन्होंने भारत का भारत से परिचय कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. एक संचारक के रूप में विवेकानंद ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्ति का परिचय दुनिया को कराया. यह कहना था वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय का, जो भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित शुक्रवार संवाद में 'विवेकानंद: एक संचारक' विषय पर बोल रहे थे. उपाध्याय ने कहा कि स्वामी जी के संचार में यह ताकत थी कि वे अपनी ऊर्जा से अपनी बात सामने वाले के मस्तिष्क में पहुंचा देते थे. उन्होंने कहा कि विवेकानंद के संचार के आयामों को जानना और उनका तार्किक विश्लेषण करना बहुत कठिन है. स्वामी जी के संचार में आज भी वही ऊर्जा विद्यमान है, जो आज से सौ साल पहले थी. उन्होंने कहा कि विवेकानंद के संचार को लोग सिर्फ शिकागो भाषण तक जानते हैं, लेकिन नरेंद्र से विवेकानंद तक का सफर कलकत्ता से शिकागो तक सीमित नहीं है. विवेकानंद जानते थे कि किस मंच से क्या बात कहनी है. भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और परंपरा पर बात करने के लिए उन्होंने विश्व धर्म संसद का मंच चुना, जहां उनके संबोधन ने भारत को विश्व पटल पर अलग पहचान दिलाई.
उपाध्याय के अनुसार विवेकानंद ने जो भी कहा, अपने अनुभव के आधार पर कहा. उनका संचार नीरस नहीं है. वह लोगों को जोड़ता है. स्वामी जी अपने ज्ञान को किसी पर थोपते नहीं हैं और न ही अपने संचार से किसी को अंधविश्वासी बनाते हैं. वे सुनने वालों के मन में जिज्ञासा पैदा करते हैं. अपने इसी गुण के कारण स्वामी जी देश के अंतिम व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे. उन्होंने कहा कि भारतीय समाज में आत्मविश्वास भरकर स्वामी जी ने नए भारत के निर्माण पर जोर दिया. स्वामी जी जो पुस्तक पढ़ते थे, उनसे न केवल वे स्वयं सीखते थे, बल्कि दूसरों को भी सेवा और त्याग का संदेश देते थे. ऐसा कहा जाता है कि शायद ही दुनिया का कोई विषय हो, जिसके बारे में स्वामी जी को जानकारी न हो. यही एक सफल संचारक की सबसे बड़ी ताकत है. कार्यक्रम का संचालन कविता शर्मा ने किया एवं स्वागत भाषण संस्थान के डीन अकादमिक प्रो गोविंद सिंह ने दिया. धन्यवाद ज्ञापन आउटरीच विभाग के प्रमुख प्रो प्रमोद कुमार ने किया.