पटनाः बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की 155वीं जयंती पर समारोह और कवि-सम्मेलन आयोजित किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. अनिल सुलभ ने की. उन्होंने कहा कि आधुनिक हिंदी, जिसे हम खड़ी बोली कहते हैं को अगर भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, तो यह द्विवेदी जी के काल में जवान हुई. आधुनिक हिंदी को गढ़ने में असंदिग्ध रूप से आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का अद्वितीय अवदान है. वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. वासुकीनाथ झा ने कहा कि हिंदी भाषा और साहित्य के उन्नयन में आचार्य द्विवेदी का योगदान अद्वितीय और महनीय है. उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती' के माध्यम से हिंदी का महान यज्ञ आरंभ किया और 'अनुवाद' को एक बड़े उपकरण के रूप में उपयोग किया. विभिन्न भाषाओं की मूल्यवान कृतियों का अनुवाद कर हिंदी का भंडार भरा. अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि आधुनिक हिंदी का इतिहास और इस पर की जाने वाली कोई भी चर्चा द्विवेदी जी के नाम के बग़ैर पूरी नही हो सकती. सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा मेहता नगेंद्र सिंह तथा डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने भी अपने विचार व्यक्त किए.
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ. जिसमें वरिष्ठ कवि डा शंकर प्रसाद ने सुनाया, 'हिज़्र की रात बड़ी लंबी कहां कटती है', रमेश कँवल के बोल थे, 'जब ज़ुल्फ़ तेरी मुझ पे बिखरती नज़र आए.' कवि घनश्याम ने सुनाया, 'वक़्त देता है जब दगा बिल्कुल/ टूट जाती है फिर वफ़ा बिल्कुल'. कवयित्री डा सुधा सिन्हा ने, 'बहुत प्यार करते हैं, तेरा इंतज़ार करते हैं', तो डा सविता मिश्र 'मागधी' ने 'फूल तुम खिलो, ख़ूब खिलो' और रेखा भारती ने 'तुम आओ या न आओ, मैं इंतज़ार करूंगी' सुनाकर लोगों का दिल जीत लिया. कार्यक्रम में कवि डा दिनेश दिवाकर, डा राम गोपाल पाण्डेय, महानंद शर्मा, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, कामेश्वर कैमुरी, अनुपमा नाथ, लता प्रासर,शुभ चंद्र सिन्हा,डा आर प्रवेश, अर्जुन प्रसाद सिंह, शंकर शरण आर्य, डा शालिनी पाण्डेय, मधु रानी, चंद्र प्रकाश 'तारा' तथा नीरव समदर्शी ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया. धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्णरंजन सिंह ने तथा मंच संचालन राज कुमार प्रेमी ने किया.