जयपुर: समांतर लिटरेचर फेस्टिवेल में हां या ना के बीच स्त्री लि।य पर एक परिचर्चा हुई जिसमें लेखिका नूर ज़हीरसुधा अरोड़ागीताश्री और उर्मिला ने हिस्सा लिया। प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापक सज्जाद जहीर का बेटी और लेखिका नूर जहीर ने कहा कि जितने भी  पैगम्बर आये हैं वो सब के सब पुरूष ही हुए हैं। वे हमें सिखाते हैं कि ऑथरिटी मर्द को ही देना है।सुधा अरोड़ा ने  चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि कुरान की नारीवादी व्याख्या नहीं की गई। सलाम ही नहीं हिंदुओं में भी  देवियां धर्मकिस्मत ने लिख दिया है कि बोलना नहीं है।  पुरुष नहीं बोलता  वो शालीन चुप्पी है औरत बोलती है तो कुलटा है। साहित्य में भी पवित्रता  तोड़ी गई है। मैं 20 सालों से काउंसलिंग करती रही हूं, मैं तलाक की सलाह नहीं देती।

कॉलेज में शिक्षक रूपा सिंह कहा कि स्त्री को या तो देवी या दानव बना दिया गया है। स्त्री के शरीर मे बलात्कार के बाद लोहेशीशे डाले जाते हैं वो विक्ट्री का प्रतीक है। मी टू ने एक दहशत पैदा की है। हॉलीवुडबॉलीवुड से लेकर विश्विद्यालय तक में

सत्र का संचालन कर रही सुजाता ने कार्यस्थल पर विशाखा गाइडलाइन की चर्चा करते हुए कहा "मी  टू में कोई बात उठती है तो  सबसे पहले संदेह की निगाह से  देखा जाता है। सबसे पहले घर के लोग ही विरुद्ध हो जाते हैं। मानसिकता के बजाय हमें ढांचा बदलने की बात करनी चाहिए।उर्मिला ने अपनी टिप्पणी में कहा " धार्मिक विधि विधान व परम्परा में सभी स्त्री के खिलाफ है। समाज क्या कहेगालोग क्या सोचेंगे यह कहकर महिलाओं को चुप करा दिया जाता है। घरेलू हिंसा के खिलाफ कोई महिला आवाज उठाती भी है तो समाज  खड़ा हो जाता है उसके खिलाफ। सारा दोष स्त्री को जाता है।

सुधा अरोडा ने बहस में अपनी बात जोड़ते कहा " फ़िल्म शख्सीयत पर कोई आरोप लगता है तो उसकी पत्नी ही अपने बदचलन पति के पक्ष में खड़ी हो जाती है। ये पितृसत्ता का प्रभाव है।"