बांदाः डीसीडीएफ स्थित कवि केदारनाथ अग्रवाल सभागार में लोकदोय प्रकाशन द्वारा ‘पुस्तक विमोचन एवं नवलेखन सम्मान’ समारोह आयोजित किया गया. समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक कर्ण सिंह चौहान ने की तथा मुख्य वक्ता के तौर पर लेखक व संपादक अशोक त्रिपाठी, कवि नासिर अहमद सिकंदर, संपादक अरुण सिंह तथा युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी मौजूद रहे. कार्यक्रम के प्रथम सत्र में छत्तीसगढ़ के युवा कवि/ कथाकार किशन लाल को उनके चर्चित उपन्यास ‘किधर जाऊं’ के लिए वर्ष 2015 का ‘लोकोदय नवलेखन सम्मान’ दिया गया. कर्ण सिंह चौहान ने स्मृति चिह्न व प्रशस्ति पत्र प्रदान कर किशन लाल को सम्मानित किया. नासिर अहमद सिकंदर ने उत्तरीय एवं अशोक त्रिपाठी ने रु. 5000/- मूल्य की पुस्तकों का सेट भेंट किया. किशन लाल ने अपनी रचना प्रक्रिया पर बोलते हुए कहा कि मैंने जीवन के उन क्षणों को लिखा है जिनसे मैं गुजरा हूं. अरुण सिंह ने कहा कि किशनलाल का ‘किधर जाऊं’ यथार्थ का अनुभूत वर्णन है तथा व्यक्ति और समाज के बीच व्याप्त तमाम अन्तर्विरोधों का, उनके प्रभावों का दस्तावेज है. युवा कवि बृजेश नीरज ने किशन लाल का मान पत्र पढ़ा. समारोह के दूसरे सत्र में बाबू केदारनाथ अग्रवाल के प्रिय शिष्य एवं कवि जयकान्त शर्मा के नवीनतम कविता संग्रह ‘घुटनों पर चलती उम्मीद की किरण’ तथा बांदा के युवा कवि रामकरण साहू के कविता संग्रहों ‘गांव का सोंधापन’ व ‘मुक्तावली’ का विमोचन हुआ. इस मौके पर जयकान्त शर्मा एवं रामकरण साहू ने अपनी कृतियों से चुनी हुई रचनाओं का पाठ भी किया. जयकान्त शर्मा की कविताओं पर बोलते हुए युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने कहा कि जयकान्त शर्मा की कविताएं पीड़ा बोध की कुदरती अभिव्यक्ति हैं जहां चुकी हुई उम्मीदों में जिजीविषा की प्रबल आग है. रामाशंकर मिश्र ने जयकान्त शर्मा के साथ अपनी यादों को साझा किया. इतिहासकार मदन सिंह ने बधाई देते हुए उनकी कविताओं के प्रकाशन को बांदा के लिए उपलब्धि बताया.
केदार टीम के सक्रिय सदस्य शक्तिकांत ने लोकोदय प्रकाशन तथा जनवादी लेखक संघ बांदा को धन्यवाद दिया. संपादक, पत्रकार टिल्लन रिछारिया ने कहा कि बांदा में आयोजित मित्रों का यह मिलन हमें अपनी पुरानी स्मृतियों तक ले जाता है. हमें बाबू केदार का दौर याद आ रहा है. जलेस बांदा के सदस्य कवि रामौतार साहू ने कहा कि कवि जयकान्त ने संसार के सबसे बड़े भय को अपनी रचनात्मक ऊर्जा से जीता है. पत्रकार अनिल शर्मा ने कहा कि जयकान्त का कवि के रूप में आगे आने वाली पीढ़ियों को ताकत देगा तथा केदार से चली आ रही परंपरा को नयी पीढ़ी से जोड़ेगा. मुख्य वक्ता अशोक त्रिपाठी ने कहा कि जयकान्त के बहाने आज सभी लोग एक मंच पर हैं. इसके लिए लोकोदय प्रकाशन का आभार. वरिष्ठ कवि नासिर अहमद सिकन्दर ने कहा कि जयकान्त की कविताएं ‘काल से होड़’ की कविताएं हैं. वह मृत्यु से मुठभेड़ करते हैं और जीतते हैं. उनका यही भाव शमशेर और केदारनाथ अग्रवाल से उन्हें जोड़ता है. आलोचक कर्ण सिंह चौहान ने अपने संक्षिप्त संबोधन में साल 1973 के प्रलेस सम्मेलन की यादों को साझा किया और कहा कि बांदा की स्मृति लेखक संगठनों में वैचारिक समझ, स्वायत्तता व लोकतांत्रिक मूल्यों की स्मृति है. पार्टी नीति और लेखक स्वतंत्रता साथ नहीं चल सकती है. लेखक संगठनों को अन्य जनसंगठनों जैसे नहीं चलाया जा सकता है. लेखक सवाल उठाता है इसीलिए पार्टी को दिक्कत होती है. बांदा में केदारबाबू के बाद मैंने सोचा सब कुछ समाप्त हो गया लेकिन यहां अब भी केदार हैं, उनके शब्द हैं. अगर केदार आज का बांदा देख रहे होंगे तो बड़े खुश होते होंगे. गोष्ठी को नगेंद्र सिंह और मुकुंद मित्र ने भी संबोधित किया. मेहमानों का स्वागत जलेस उपाध्यक्ष व ‘मुक्ति चक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल ने किया, आभार जलेस बांदा के उपाध्यक्ष कवि जवाहर लाल जलज ने किया. जलज ने कहा कि बांदा की धरती आज धन्य हुई. गोष्ठी का संयोजन युवा कवि प्रद्युम्न कुमार सिंह ने किया तथा जलेस उपसचिव गजलकार कालीचरण सिंह एवं जलेस कोषाध्यक्ष गीतकार नारायण दास गुप्त ने आगंतुकों का सम्मान करते हुए अंगवस्त्र पहनाया. मिनट्स तथा मीडिया दायित्व जलेस उपाध्यक्ष अरुण खरे ने निभाया. संचालन जलेस बांदा के अध्यक्ष उमाशंकर सिंह परमार ने किया. इस मौके पर अशोक त्रिपाठी, जीतू, बाबू लाल गुप्त, डीडी सोनी, आनन्द सिन्हा, अर्जुन सिंह, सत्येन्द्र गुप्ता, अरुण निगम आदि सहित जनपद बांदा के सभी महत्त्वपूर्ण लेखक, पत्रकार, समाजसेवी व अधिवक्ताओं के साथ बाबू केदारनाथ अग्रवाल के कई शिष्य और नजदीकी लोग उपस्थित रहे.