नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के दौरान किताबों से सियासत की कोशिश की जा रही है. सूचनाधिकार कार्यकर्ता- लेखक संजॉय बसु, नीरज कुमार और शशि शेखर की किताब 'वादा फरमोशी के लोकार्पण के बहाने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के कामकाज पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि जब वह 2001 में अरुणा रॉय से मिले थे, तब उन्होंने उन्हें समझाया कि आरटीआई क्या है. वह अरुणा राय को अपना गुरु मानते हैं और उन्हें विश्वास है कि एक लोकतंत्र, या एक जनतंत्र में, आरटीआई राष्ट्र के लोगों की सेवा करता है, क्योंकि ऐसी व्यवस्था में लोग ही प्रधान होते हैं और सरकार उनके प्रति जवाबदेह होती है. विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए देश के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने बताया कि कैसे तत्कालीन प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने उन्हें मुख्य सूचना आयुक्त के पद को स्वीकार करने के लिए लिखा था, क्योंकि उन्हें एक विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया था. उन्होंने यह भी बताया कि बतौर सूचना आयुक्त सरकार के पक्ष में कार्य करना उनके लिए कितना कठिन साबित हुआ था.

वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि भले ही आज हम सभी अपने मतदान अधिकार का उपयोग एक अधिकार के रूप में करते हैं, लेकिन जब आजादी के बाद एक युवा राष्ट्र को इस सिद्धांत पर निर्मित किया गया कि सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं, तो यह किसी अजूबे से कम नहीं था. उन्होंने कहा कि हमें अपने नेता का चयन करने का अधिकार आज़ादी के साथ ही मिल गया लेकिन आरटीआई के माध्यम से सूचित हो कर वोट देने का अधिकार पाने में 60 साल लग गए. अंत में किताब पर अपने अनुभव सुनाते हुए तीनों लेखकों ने दावा किया कि उन्होंने इस किताब में पूरी तरह से तथ्यों का सहारा लिया है और बिना किसी पक्षपात के उन्हीं तथ्यों को रखा है जिसकी सूचना खुद सरकार से हासिल की गई थी. लेखकों ने सरकार पिछले 3 वर्षों में दायर वास्तविक आरटीआई के आधार पर यह पुस्तक लिखी. उनका कहना है कि यह किताब मोदी सरकार की कई योजनाओं और वादों की वास्तविकता को दर्शाती है. यह किताब पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार के कामकाज का एक दस्तावेज है. पुस्तक में शामिल कुछ विषयों में नमामि गंगे, गौ माता, एकलव्य योजना, आदिवासियों के लिए योजनाएं, निर्भया फंड, बेटी बचाओ, बेरोजगारी डेटा, 100 हवाई अड्डे, मेक इन इंडिया इत्यादि योजनाओं की दशा, दिशा और यथार्थ स्थिति का विवरण शामिल है.