पटना 28 जुलाई। कार्ल मार्क्स की 200 वीं और राहुल सांकृत्यायन की 125 वीं वर्षगाठ पर अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के द्वारा ए एन सिन्हा समाज अध्ययन एवं शोध संस्थान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। पहले दिन के कार्यक्रम का उद्घाटन प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने किया। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक शक्तियां पूंजीपतियों के साथ मिलकर देश को फासीवाद की तरफ ले तरफ ले जा रही हैं। इन फासीवादी शक्तियों से निपटने के लिए वामपंथियों को एक साथ मिलकर लड़ाई लड़नी होगी जिससे कि सांप्रदायिक शक्तियों को परास्त किया जा सके और एक समतामूलक समाज बनाया जा सके।  प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन ने कहा कि हमारे दौर में विवेक के ऊपर सबसे अधिक खतरा है, इसलिए हमें कार्ल मार्क्स और राहुल सांकृत्यायन के विचारों से संघर्ष की प्रेरणा लेनी चाहिए।

 

जे एन यू के प्रोफेसर सुबोध नारायण मालाकार ने कहा कि आज मार्क्स को मानने वाले लोगों को साहित्य के माध्यम से दलितों को अपने साथ जोड़ना चाहिए जिससे फासिस्ट सत्ता से मजबूती से लड़ा जा सके। कार्ल मार्क्स और राहुल सांकृत्यायन दलितों और वामपंथियों की एकजुटता के मिलन बिंदु हैं। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक ब्रज कुमार पांडेय ने कहा कि पूंजीवाद की वजह से जिस प्रकार के संकट पूरी दुनिया में पैदा हुए हैं उसका निदान कार्ल मार्क्स ने दो सदी पहले अपनी किताबों में सुझाया है। उद्घाटन सत्र में ब्रज कुमार पांडेय द्वारा लिखित हमारा समय और मार्क्सपुस्तक का लोकार्पण भी किया गया।

 

दूसरे सत्र को जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर मणीन्द्रनाथ ठाकुर ने संबोधित करते हुए कहा ” अब पूंजीवाद को मुनाफा कमाने के लिए शर्म की जरूरत नहीं होगी। समपत्तिशाली वर्ग, मध्य वर्ग खुद को अलग और सुरक्षित बना रहा है। पूंजीवाद बदलाव आ गया है। जो पूंजीवाद हम देख रहे हैं मार्क्स के समय उतनी चुनौतीपूर्ण न थी। आज जनतंत्र पूंजीवाद के लिए खतरा है। यदि डेमोक्रेसी और डेवलपमेंट में से एक को चुनना हो तो अधिक लोग डेवलपमेंट को ही चुनेंगे। पंजाब विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर सुखदेव सिंह सिरसा ने मार्क्स के साथ एंगेल्स को भी याद करने की बात करते हुए कहा ” आज लोग मार्क्स के कब्र की बात तो करते हैं लेकिन ब्रिटिश म्यूज़ियम नहीं जाते जहां वो अध्ययन करते थे। आज हमारे सिर्फ काम ही नहीं मज़दूर वर्ग की प्रकृति भी बदल गयी है । केरल से राज्य सभा सांसद विनय विश्वम ने अपने संबोधन में कहा ” मार्क्स ने भारत के बारे में खासा लेखन किया है। मार्क्स की बर्जुआजी की समझदारी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। इस सत्र की अध्यक्षता केरल के मोहन दास एवं बंगाल के अमिताभ चक्रवर्ती ने किया और संचालन अनीश अंकुर ने किया।

तीसरा सत्र

तीसरे सत्र का विषय था साहित्य व संस्कृति की दुनिया मे मार्क्स” 

आलोचक वीरेन्द्र यादव ने हिंदी साहित्य में विरोध की परंपरा को रेखांकित करते हुए कहा “  महावीर प्रसाद द्वविवेदी का सम्पत्तिशास्त्र और प्रेमचंद का साहित्य का उद्देश्य नामक लेखक मार्क्सवाद से प्रेरित था इसलिए प्रेमचंद ने कहा की साहित्य के कसौटी बदलनी होगी। इस दृष्टि से  मुक्तिबोध ने भी अपने साहित्यिक सुझाव  मार्क्सवाद से प्रभावित रहे हैं।”

बात को आगे बढाते हुए इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने कहा “   जो सचमुच मार्क्सवादी थे उन्होंने मार्क्स का नाम न लिया। जैसे प्रेमचंद  और लुशुन थे।  हिंदुस्तान में मार्क्सवादी दृष्टिकोण से सर्वहारा का उदाहरण दलित ही हो सकता है। 

हिमाचल प्रदेश के दीनू कश्यप ने कहा ” मेरी समझ बनती है कि  साहित्य हमेशा प्रतिपक्ष की आवाज होता है। मार्क्स के सिद्धांतो पर आधारित 1917 में  रूसी  क्रांति होती है। मज़लूमो, उत्पीड़ितों को आवाज मिली। नूतन आनंद ने  कैफ़ी आज़मी, मज़ाज़  को याद करते हुए कहा ” नाटक व साहित्य इतना सशक्त माध्यम है की वो । हमें डराने की कोशिश न की जाए  वो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। सिर्फ प्रेमचंद के साहित्य को लेकर जाएं तो बहुत कुछ बात बन सकती है। “

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ में अध्यक्ष व विधान परिषद के सदस्य केदार नाथ पांडे ने कहा “  दुनिया  को बदलने की कार्रवाई करने के लिए और ऊर्जावान होकर आगे निकलेंगे” इस सत्र का संचालन  रवींद्र नाथ राय ने किया।

‌प्रगतिशील लेखक संघ की बिहार इकाई द्वारा आयोजित मार्क्स के 200 वें और राहुल सांकृत्यायन के 125 वीं वर्ष के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठीका अंतिम सत्र काव्य पाठ था जिसकी अध्यक्षता नरेश सक्सेना और आलोकधन्वा ने किया।  कविता पढ़ने वाले मुख्य कवि थे राजकिशोर राजनशहंशाह आलम, सत्येंद्र कुमार , अनिल विभाकर  , विजय पढीहारी ( उड़ीसा) , ललन लालित्य, दीप नारायण शर्मा  ‘दीपक‘ , शेखर सांवत , शशांक मुकुट शेखर, सत्यम कुमार  झा अंचित , उपांशु, रमेश ऋतंभर, मुसाफिर बैठा, उमेश कुँवर कवि, समीर परिमल, कुमार नयनशिवदयाल, रंजीत वर्मा, उत्कर्ष, ज्योति स्पर्श, संजय कुमार कुंदन डॉ श्रीराम तिवारीअरविंद पासवानसंचालन शेखर मल्लिक और रानी श्रीवास्तव ने किया।

(अनीश अंकुर की रिपोर्ट)