सूवाः फ़िजी के भारतीय उच्चायोग से जुड़े स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र और हिंदी पत्रिका प्रवासी संसार के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय वेब संगोष्ठी 'फ़िजी में लोक गीत' विषय पर आयोजित हुआ. इस संगोष्ठी की मुख्य अतिथि थीं सुप्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी. फ़िजी में भारत की उच्चायुक्त पद्मजा ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की. प्रवासी संसार के संपादक राकेश पांडेय ने संगोष्ठी का संचालन किया. स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र सूवा के निदेशक संतोष कुमार मिश्र ने आमंत्रित अतिथियों और श्रोताओं, दर्शकों का स्वागत किया. इस संगोष्ठी में फ़िजी की ओर से बीज वक्ता थे सुविख्यात शिक्षाविद और पूर्व सांसद डॉक्टर ब्रिज लाल, जबकि भारत से बीज वक्ता की भूमिका में लोक गीतों की शोधार्थी और गायिका विद्या बिंदु सिंह थीं. मुलोमूलो, नान्दी के निवासी 98 वर्षीय भजन और लोक गीत गायक साधू गौरी शंकर इस संगोष्ठी के मुख्य आकर्षण रहे. उनके माता-पिता फ़िजी में गिरमिटिया के रूप में आए थे. कार्यक्रम में अविनेश देव, पंडित अविनेश मनसाचार्य, विद्या वती, रूप वती, उत्तरा कुमारी, शलेसनी देवी, पनाह सुदीप्ति शर्मा जैसे फ़िजी के चर्चित लोक गीत गायक, गायिकाओं ने बिदेसिया, कहरवा, विवाह गीत, सोहर, आल्हा, भजन, प्रभात भैरवी, पचरा, चौकी भजन इत्यादि लोक गीत प्रस्तुत किए.अपने स्वागत भाषण में स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक संतोष कुमार मिश्र ने कहा कि ऐसे समय में जब विश्व करोना महामारी से आतंकित है और आने जाने के सभी रास्ते बंद हैं तब फ़िजी के लोक गीतों को ऑनलाइन विश्वपटल पर स्थापित करने का यह छोटा सा प्रयास है. 

मुख्य अतिथि मालिनी अवस्थी ने 2012 में भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् की ओर से की गयी अपनी फ़िजी यात्रा का स्मरण करते हुए कहा कि फ़िजी की जनता के साथ वह गहरी आत्मीयता रखती हैं. उन्होंने कहा कि उनके कुछ गीत तो फिजी के लोक गीतों से प्रेरित हैं. उन्होंने यह सुझाव दिया कि भारत और फ़िजी के बीच सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ करने हेतु दोनों देशों से कला और संगीत से सम्बंधित शोधार्थियों को एक-दूसरे के यहां भेजा जाना चाहिए ताकि जनता एक दूसरे की कला, संस्कृति, गीत और संगीत से भली भांति परिचित हो सके.  
डॉ ब्रिज लाल ने फ़िजी में गिरमिट लोक संगीत के इतिहास पर प्रकाश डाला और कहा कि फ़िजी ने अपने पुरखों द्वारा वर्षों पहले लायी गयी अपनी विरासत को कायम रखा है. उनका दावा था फ़िजी का युवा वर्ग भी इस विरासत को आगे ले जाने के लिए तैयार है. विद्या बिंदु सिंह ने कहा कि फ़िजी का लोक संगीत अभी भी अपने मूल रूप में विद्यमान है, जो अत्यंत मनोहारी है. अध्यक्षीय टिप्पणी में उच्चायुक्त पद्मजा ने कहा कि फ़िजी के लोक संगीत की तुलना भारत के लोक संगीत से न की जाये क्योंकि उनकी दृष्टि में फ़िजी का लोक संगीत वर्षों पूर्व मुख्यतः अवधी क्षेत्र से फ़िजी आये लोगों का संगीत है जो बिल्कुल अछूता और अभी भी बिलकुल विशुद्ध रूप में विद्यमान है, जो अवध, भोजपुर और उत्तर भारत के विभिन्न क्षत्रों के ग्रामीण अंचलों में गाया  जाता है. राकेश पांडेय ने अपने फ़िजी दौरों का उल्लेख करते हुए कहा कि फ़िजी की जनता भारत की लोक संस्कृति से निरंतर संपर्क की आवश्यकता महसूस करती है. यह आयोजन उसी का हिस्सा है. उन्होंने कार्यक्रम से जुड़े सभी व्यक्तियों, कलाकारों के प्रति आभार प्रकट किया. संतोष कुमार मिश्र ने संगोष्ठी की सफलता को देखते हुए भविष्य में भी ऐसे ही अन्य कार्यक्रम आयोजित करने की बात कही. इस कार्यक्रम से जुड़ने वाले व्यक्तियों में विजय राणा, इंदु पाण्डेय, नारायण कुमार, विमलेश कांति वर्मा, सुकांता चरण साहू और सिंगापुर की हिंदी विद्वान संध्या सिंह उल्लेखनीय हैं.