नई दिल्लीः विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन ने अपने स्टॉल पर शुरुआती दिनों में ही कई आयोजन किए, जिसमें कालजयी कथाकार नरेन्द्र कोहली की पुस्तक 'सागर मंथन' पुस्तक पर चर्चा के साथ ही मनोज मुंतशिर के ताज़ा ग़ज़ल संग्रह 'मेरी फ़ितरत है मस्ताना…' और सुनीता बुद्धिराजा की कृति 'रसराज पंडित जसराज' पर चर्चा हुई. नरेन्द्र कोहली का जन्मदिन भी इसी दिन रहा, इसलिए उनका स्वागत वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने गुलदस्ता देकर और अंगवस्त्र भेंटकर किया. इस अवसर पर लेखक और पाठक समुदाय ने उन्हें बधाई दी. कोहली ने आत्मीय संवाद में बताया कि मैंने किस्सागोई का शिल्प आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और अमृत लाल नागर से जाना समझा और विकसित किया. भारतीय संस्कृति-सभ्यता मेरे लेखन की धुरी है लेकिन मैं दूसरे धर्मों का पाठक भी हूं. मेरी किताब 'सागर मंथन' पूर्वात्य व पाश्चात्य संस्कृतियों का सांकृतिक द्वन्द  हैं, और ईसाई धर्म का सूक्ष्म कथ्य भी मैंने अपने लिखने में शामिल किया है. इसमें अमेरिकी जीवन समाज का यथार्थ चित्रण है. विशेषकर प्रवासी भारतीय जीवन के बदलाव का रूपांकन है.

इसके बाद दूसरे कार्यक्रम में मनोज मुंतशिर के ताज़ा ग़ज़ल संग्रह 'मेरी फ़ितरत है मस्ताना…' पर वाणी प्रकाशन की प्रबन्ध निदेशक अदिति माहेश्वरी-गोयल ने चर्चा की. चर्चा की शुरुआत में मनोज ने कहा अगर किताबों को लेखक की जरूरत है तो उससे ज़्यादा जरूरत प्रकाशक की और वो भी सही प्रकाशक की है. उन्होंने मेरी फितरत है मस्ताना की कुछ पंक्तियां पढ़कर सुनाई …ये किताब क्यों की उन्होंने तीन वजह बताईं. पहली वजह गलत है…दूसरी वजह और ज़्यादा ग़लत है, क्योंकि मैंने जो भी लिखा, दिल से लिखा. तीसरी वजह निहायत ग़लत है, क्योंकि फ़िल्मी गीत लिखना मेरी नज़र में बेहद इज्जत का काम है. उन्होंने तर्क दिया कि वहां मुझ पर कन्ट्रोल था यहां अनकन्ट्रोल हूं. मेरी खुशी में कितना सन्नाटा है….क्योंकि प्यार में सिर्फ दो तरह के हादसे होते हैं…' पहला जो हमें मिल जाये, दूसरा जो हमें न मिले'.
समयकाल नामक कार्यक्रम में सुनीता बुद्धिराजा की कृति 'रसराज पंडित जसराज' पर सवांद हुआ. सुनीता बुद्धिराजा ने 7 वर्षो के अथक समर्थन के साथ इसे लिखा है. इस किताब के संस्मरण के जिक्र में लेखिका को महादेवी वर्मा का एक कथन याद आया – संगीत के लिए एक सुंदर दिल चाहिए! लेखिका ने दिल को सुंदर बनाते हुए यह किताब लिखी. सारे शीर्ष कलाकारों- हरिप्रसाद चौरसिया, शिवकुमार शर्मा, किशोरी अमोनकर आदि का प्रेम और मार्गदर्शन उनके लेखन की ताकत बनी. उनके भीतर संगीत ने एक आध्यात्मिक आनन्द सिरजा. उनका मानना था कि यह जीवनी उनके जीवन के पुण्य का प्रतिफल है. वे अगली किताब पर काम कर रही हैं, जो वाणी से ही प्रकाशित होगी.