पटना: बिहार में जिला व सत्र न्यायाधीश रह चुके गज़लगो दिनेश कुमार शर्मा के नए संग्रह "न रोको परिन्दों को"(ग़ज़ल-संग्रह) का लोकार्पण  किया गया। राजभवन सभागार, पटना, हुए इस समारोह के  लोकार्पणकर्ता थे महामहिम राज्यपाल, श्री लाल जी टंडन । न्याय, कला व साहित्य क्षेत्र की विभूतियों की  उपस्थिति  में कार्यक्रम संपन्न हुआ। स्वागत-उद्बोधन डाॅ शंकर प्रसाद ने किया। 

महामहिम राज्यपाल महोदय ने इन ग़ज़लों में मानवीय मूल्यों की ऊंचाई और अनुभव की गहराई  को रेखांकित करते हुए कहा " साहित्य समाज को रास्ता भी दिखाता है। इंसान को सही रास्ते ओर चलने की प्रेरणा देता है।कविताएं मनुष्यता की पहचान  व प्रतिष्ठा बढ़ाती हैं, जिसमें सिर्फ इश्क और माशूकी की बातें ही नहीं बल्कि जीवन की तल्ख सच्चाइयां भी होती हैं। इंकलाबी सपने और संकल्प भी होते हैं।

न रोको परिन्दों को" की यह पंक्ति सबोंको बहुत भायी

"क़बल इसके ,आहें जला दें क़फ़स को;

न रोको परिन्दों को, उन्हें उड़ जाने दो।"

डाभूपेन्द्र कलसी ने संग्रह की ग़ज़लों की संक्षिप्त मीमांसा प्रस्तुत करते हुएइन्हें प्रेम, अध्यात्म, और मानवता की मर्मस्पर्शी व्याख्या बताया।"

 अजीम शायर जनाब नाशाद औरंगाबादी ने संग्रह की ग़ज़लों को इंसानी आज़ादी का पुरज़ोर समर्थक बताते हुए इन्हें पाठकों के दिल को छूने वाला बताया। लोकार्पित रचना के रचनाकार सेवा-निवृत जिला जज दिनेश कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा " बुद्धि की प्रवृति हृदय को पराभूत करने की,उसे दबाने की होती है। किन्तु, हृदय जब पराजय स्वीकार नहीं करता और अपने एहसासों को अभिव्यक्त करने को तत्पर होता है, तब कविता की रचना होती है,जिसमें हृदय को एक बेचैनी से गुज़रना पड़ता है।"दिनेश कुमार शर्मा ने साथ में यह भी जोड़ा " सेवा  का क्षेत्र चाहे जो भी हो, मनुष्य में संवेदनशीलता और सहृदयता  आवश्यक है और कविता ही वह हस्ती है जो इन मूल्यों को जीवित रखती है।" दिनेश कुमार शर्मा ने अपनी कुछ रचनाओं का पाठ भी किया।

ताउम्र जिसको गुनगुनाता रहूं मैं हरदम

करो अहसान तुम, अब वही गीत बन जाय।

                        धन्यवाद-ज्ञापन श्री श्रीकांत सत्यदर्शी ने अपने काव्यात्मक अंदाज़ में संपन्न करते हुए संग्रह की एक ग़ज़ल की चंद पंक्तियों को अंदाज़े-बयाँ का बेहतरीन नमूना बताया:-

    " कितनी हसीन लगती हैं उनके सितम की बिजलियाँ;

      दिल की ज़मीं पे गिरने का इनका अलग अंदाज़ है।

     मुझको सकून देने की ज़हमत न आप लीजिए;

      यक़ीन कीजिए कि दर्दे-दिल पे हमको नाज़ है।"

            कार्यक्रम का  संचालन  श्री राज्यपाल के पी.आर.ओ और स्वंय  लेखक  सुनील कुमार पाठक ने किया। कार्यक्रम में मुख्य लोकायुक्त एस. के शर्मा, पूर्व न्यायाधीश सी.एम प्रसाद, राज्यपाल के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह, अपर सचिव विजय कुमार, ओएस डी फूलचन्द्र चौधरी, विधि पदाधिकारी राघवेंद्र विक्रम सिंह परमान, श्यामजी सहाय, अनिल सुलभ, नृपेन्द्रनाथ गुप्त, डॉ शिववंश पांडे, डॉ लक्ष्मी सिंह, राजेश शुक्ला आदि मौजूद थे।