आज कालजयी कथाकार निर्मल वर्मा की जयंती है. उनका जन्म 3 अप्रैल, 1929 को शिमला में हुआ. उनकी संवेदनात्मक बुनावट पर उस पहाड़ी शहर की छाया दूर तक पहचानी जा सकती है. 1956 में 'परिन्दे' कहानी के प्रकाशन के बाद से नयी कहानी के इस निर्विवाद प्रणेता का सबसे महत्त्वपूर्ण समय विदेश-प्रवास में बीता. साल 1959 में वह चेकोस्लोवाकिया के प्राग में प्राच्य विद्या संस्थान और चेकोस्लोवाक लेखक संघ द्वारा आमंत्रित होकर क्या गए, सात वर्ष तक वहीं रही. उन्होंने कई चेक कथाकृतियों का अनुवाद किया. लंदन प्रवास के दौरान उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए सांस्कृतिक-राजनीतिक समस्याओं पर लेख और रिपोतार्ज लिखे. उनकी 'माया दर्पण' कहानी पर एक फिल्म बनी, जिसे 1973 की सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ. वह निराला सृजनपीठ, भोपाल और यशपाल सृजनपीठ, शिमला के अध्यक्ष रहे. उनकी चर्चित प्रकाशित कृतियों में कहानी संग्रह- 'परिंदे', 'जलती झाड़ी', 'पिछली गर्मियों में', 'बीच बहस में', 'कौवे और काला पानी', 'सूखा तथा अन्य कहानियां'; उपन्यास- 'वे दिन', 'लाल टीन की छत', 'एक चिथड़ा सुख', 'रात का रिपोर्टर', 'अंतिम अरण्य'; यात्रा वृत्तांत- 'चीड़ों पर चाँदनी', 'हर बारिश में', 'धुंध से उठती धुन' शामिल है.
इसके अलावा उन्होंने कई विधाओं में लिखा. उनके निबंध संकलन 'शब्द और स्मृति', 'कला का जोखिम', 'ढलान से उतरते हुए', 'भारत और यूरोप: प्रतिश्रुति के क्षेत्र', 'इतिहास, स्मृति, आकांक्षा', 'आदि, अंत और आरंभ', 'सर्जना-पथ के सहयात्री', 'साहित्य का आत्म-सत्य' नाम से छपे. उनका लिखा एक नाटक 'तीन एकांत' खूब चर्चित हुआ. उनके संचयन व अनुवाद 'दूसरी दुनिया', 'प्रतिनिधि कहानियाँ', 'शताब्दी के ढलते वर्षों से', 'ग्यारह लंबी कहानियां'; 'रोमियो जूलियट और अंधेरा', 'बाहर और परे', 'कारेल चापेक की कहानियां', 'बचपन', 'कुप्रिन की कहानियां', इतने बड़े धब्बे, झोंपड़ीवाले, आर यू आर, एमेके: एक गाथा नाम से छपे. उनके संभाषण, साक्षात्कार, व पत्र भी छपे जिनमें 'दूसरे शब्दों में' उनके जीवनकाल में व 'प्रिय राम' और 'संसार में निर्मल वर्मा' मरणोपरांत छपा. अपने जीवनकाल में निर्मल वर्मा साहित्य के लगभग सभी श्रेष्ठ सम्मानों से समादृत हुए, जिनमें साहित्य अकादेमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादेमी महत्तर सदस्यता उल्लेखनीय हैं. भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से भी सम्मानित किया था. कहते हैं भारत सरकार ने निर्मल वर्मा को औपचारिक रूप से नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया था.