नई दिल्लीः यह सभी जानते हैं कि साहित्य अकादमी ने चर्चित आलोचक डॉ नामवर सिंह को अपने सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से नवाजा था. उनके न रहने पर अकादमी ने उनकी स्मृति में कई आयोजन किए. अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव की तरफ से जारी विज्ञप्ति में नामवर सिंह को इन शब्दों में याद किया गया, 'डॉ नामवर सिंह हिंदी आलोचना के 'शिखर पुरुष' के रूप में स्वीकृत थे. डॉ नामवर सिंह ने बीसवीं सदी के छठे दशक से हिंदी आलोचना क्षेत्र में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज कराई और हिंदी साहित्य के मूल्यांकन और दिशा-निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया. वह हिंदी आलोचना की वाचिक परंपरा के आचार्य के रूप में समादृत थे. नामवर सिंह कबीर की तरह वैचारिक प्रस्ताव रखते रहे. रूढ़िवादी चिंतन, अंधविश्वास, कलावाद, व्यक्तिवाद आदि के खि़लाफ़ चिंतन को प्रेरित करते रहे. नई चेतना का प्रसार करते रहे. अपने समय के प्रश्नों से टकराते हुए युग चेतना से संपृक्त एक बेहद जागरूक आलोचक की विश्लेषण क्षमता, साहित्य के मर्म की गहरी समझ और तथ्यों को तार्किक रूप से प्रस्तुत करने की उनकी अभिनव शैली उनके सृजनकर्म को विशिष्ट बनाती है. हिंदी जनता की चेतना का प्रतिनिधित्व करने या प्रवक्ता बनने की क्षमता जितनी नामवर सिंह में थी, उतनी किसी दूसरे लेखक या विद्वान में नहीं मानी जा सकती. नामवर सिंह की इस विशिष्ट पूर्व परंपरा में भारतेंदु, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, प्रेमचंद, आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, भगवत शरण उपाध्याय-जैसे लेखक और विद्वान ही दिखते हैं. इन विद्वानों ने जनचेतना की ज़रूरत से जुड़े प्रश्नों से संबंधित ज्ञान की जितनी शाखाओं में व्यापकता और गहराई के साथ विभिन्न विषयों पर लिखा है, उतने बड़े पैमाने पर नामवर सिंह ने लिखा भले ही न हो, लेकिन प्रतिक्रियावादी शक्तियों से वैचारिक संघर्ष करने तथा उनकी तैयारी उन्हीं विद्वानों की तरह गहन और व्यापक थी.

 नामवर सिंह हिंदी के सर्वोत्तम वक्ता थे और माने भी जाते रहेंगे. साहित्य, विचारधारा, सौंदर्य, राजनीति और आलोचना से जुड़े तथा उनके अंतर्संबंधों के बारे में विचार नामवर सिंह की चिंतना के मुख्य विषय रहे. उनके व्याख्यानों में भाषा के प्रवाह के साथ विचारों की लय होती थी. इस लय का निर्माण विचारों के तारतम्य और क्रममबद्धता से होता है. अनावश्यक तथ्यों और प्रसंगों से वे बचते थे और रोचकता का भी ध्यान हमेशा रखते थे. नामवर सिंह का संपूर्ण साहित्यकर्म एक नई परंपरा की उज्ज्वल प्रस्तावना है. साहित्यकार और शिक्षक के रूप में अपनी व्यस्तताओं के बावजूद नामवर सिंह कई साहित्यिक संस्थाओं के साथ कार्यकारी भूमिकाओं में सक्रिय रूप में संबद्ध रहे, जिनमें साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, राजा राममोहन राय पुस्तकालय संस्थान तथा प्रगतिशील लेखक संघ शामिल थे. साहित्य अकादमी को उनका मार्गदर्शन और स्नेह प्राप्त था. डॉ. नामवर सिंह को उनकी पुस्तक कविता के नये प्रतिमान पर 1971 का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था. 27 मार्च 2018 को साहित्य अकादेमी ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान 'महत्तर सदस्यता' से सम्मानित किया था. डॉ. नामवर  सिंह के निधन से भारतीय साहित्य को बड़ी क्षति हुई है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता. साहित्य अकादमी परिवार डॉ. नामवर सिंह के प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है.