नई दिल्ली: जब जीव को लगता है कि अब उसके जीवन में सब खत्म हो गया है, तब भी उसके पास संसार के उत्थान का मौका होता है. यह कहना है श्री रामकिंकर विचार मिशन के अध्यक्ष संत मैथिलीशरण महाराज का. वह श्रीरामचरितमानस के परिप्रेक्ष्य में 'दैनिक जीवन में सफलता के बीजमंत्र समर्पण और पुरुषार्थ' विषय पर राजधानी के ईस्ट ऑफ कैलाश स्थित इस्कॉन मंदिर में प्रवचन दे रहे थे. उन्होंने किष्किंधा कांड के प्रसंगों का उदाहरण देते हुए मानव जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण सूत्रों की व्याख्या की. इस दौरान बड़ी संख्या में लोगों ने रामकथा सुनी. मैथिलीशरण महाराज ने कहा कि भरत और हनुमान श्रीरामचरितमानस के वे पात्र हैं, जो राम को पाना और राम कार्य करने को ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ मानते हैं. भरत अयोध्या से सारे समाज को चित्रकूट ले जाकर खुद को धन्य मानते हैं.
आपुन दारुन दीनता सबहिं कहउ समुझाए,
देखे बिनु रघुबीर पद जिए की जरनि न जाए..
इसी तरह हनुमान जी समुद्र पार करते समय मैनाक पर्वत द्वारा विश्राम का निमंत्रण अस्वीकार करते हुए कहते हैं, सीता जी को पाए बगैर और राम का कार्य किए बगैर मेरे जीवन की सार्थकता नहीं है.
हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम.
राम काज किन्हें बिनु मोहिं कहा विश्राम..
महाराज का कहना था कि व्यक्ति को भगवान की भक्ति के द्वारा पहले अच्छाई-बुराई का विवेक सीखना चाहिए. इसके बाद जब वह हनुमान और भरत की तरह जीवन में राम को परम लक्ष्य बनाता है, तब उसे अपने जीवन में श्रेय यानी परमार्थ और प्रेय यानी संसार सब कुछ प्राप्त हो जाता है. उन्होंने कहा कि पहले हमें अपने जीवन के चरम लक्ष्य का पता होना चाहिए कि हम पाना क्या चाहते हैं और तब उसे पाने का समय, मार्ग, उपादान और दिशा का चयन करना चाहिए. केवल सफलता को लक्ष्य बनाने से व्यक्ति बुराई के छोटे मार्ग का चयन करके अपने विनाश को जन्म दे सकता है. संत मैथिलीशरण ने कहा कि आज लोगों की सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोग क्या कहेंगे. संपाती और जटायु का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सूर्य की ओर बढ़ते हुए जटायु को अपनी सीमा का ज्ञान हुआ कि अगर सूर्य के ज्यादा पास जाएंगे तो जल जाएंगे, इस पर वह लौट गए और उन्हें भगवान की प्राप्ति हुई. वहीं, संपाती इस बात की चिंता करता रहा कि अगर वह लौट गया तो लोग क्या कहेंगे. इसके कारण उसने अपने पंख जला लिए और धरती पर जा गिरा. फिर भी संपाती ने सीता माता को खोजते हुए भटक रही वानर सेना को उनका पता बताया. इससे संसार का उत्थान हुआ और रावण के आतंक से लोगों को मुक्ति मिली.