पटना,  15 अक्टूबर।  बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने आज सौदर्यशास्त्री कुमार विमल  और हिंदीसेवी सेठ गोविंद दास की स्मृति में आयोजन किया गया। आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहायदि हमें डा कुमार विमल और सेठ गोविंद दास जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि देनी है तो हमें हिन्दी को देश के राजकाज की भाषा बनाने में और थोड़ी भी देर नही करनी चाहिए।

डा विमल के संदर्भ से हिन्दी काव्य में सौंदर्य-शास्त्र पर अपना व्याख्यान देते हुए, सम्मेलन के कार्यवाहक प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा  " कुमार विमल की ख्याति साहित्य संसार में एक सौंदर्य-शास्त्री के रूप में हुई। उन्होंने इस विषय पर दो महत्त्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, जिनके प्रणयन से यह समझा जा सकता है कि काव्य हीं नहीं कथा-कहानी, उपन्यास अथवा निबंधों में भी सौंदर्य किस प्रकार अनुभूत किया जा सकता है।"  

 हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष अनिल सुलभ ने  साहित्य के इन दोनों महापुरुषों के बारे में विचार प्रकट करते हुए कहाकुमार विमल, काव्य में सौंदर्य-शास्त्र के महान आचार्य थे। अपने समय के वे एक जीवित साहित्य-कोश थे। उनका संपूर्ण जीवन, साहित्य और पुस्तकों के साथ अहर्निश जुड़ा रहा। वे प्रायः हीं पुस्तकों से घिरे और लिखते-पढ़ते हीं देखे जाते थे। उनका जीवन साहित्य का पर्यायवाची था। समालोचना के क्षेत्र में आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के बाद डा विमल का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। "

सेठ गोविंद दास के सम्बंध में  डा सुलभ ने कहा " स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान और उसके बाद राष्ट्रभाषा हिन्दी और हिंदी साहित्य के आंदोलन को सेठ गोविंद दास का बहुत बड़ा संबल प्राप्त हुआ। उन्होंने इस हेतु अपना सारा तन, मन, धन लगा दिया। गांधीजी से प्रभावित होकर अपने सुखमय जीवन का त्याग कर मानव-सेवा तथा स्वतंत्रता-संग्राम में कूद पड़े सेठ जी, हिन्दी भारत की राजभाषा बने इसके समर्थक थे। " ज्ञातव्य हो कि सेठ गोविंद दास ने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखीं। उनपर रहस्य-रोमांच और तिलिस्म के लेखक बाबू देवकी नंदन खत्री और अंग्रेज़ी नाटककार शेक्सपियर का गहरा प्रभाव था। वे 1947  से 1974 (देहावसान) तक, जबलपुर सेलगातार भारत के संसद के सदस्य रहे। साहित्य और शिक्षा में उनके अवदान को देखते हुए उन्हें पद्मभूषण के अलंकरण से भी विभूषित किया गया।

हिंदी साहित्य  सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा  " कुमार विमल साहित्य में सौंदर्य के बड़े आग्रही थे। वे यह मानते थे कि, सौंदर्य के अभाव में साहित्य रस-हीं हो जाता है। किसी भी रचना के लोकप्रिय होने के पीछे उसका आंतरिक सौंदर्य ही है।

 इस अवसर पर वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, राज कुमार प्रेमी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, प्रभात कुमार धवन, शुभ चंद्र सिन्हा, शंकर शरण आर्य, लता प्रासर, बाँके बिहारी साव, अर्जुन प्रसाद सिंह, नेहाल कुमार सिंह 'निर्मल', रामाशीष ठाकुर, ज़फ़र इक़बाल, रवींद्र सिंह, विभा कुमारी तथा  अनिला विर्णवे ने भी अपने विचार व्यक्त किए।