नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने रवींद्रनाथ टैगोर के 158वें जन्म दिवस पर 'टैगोरः पाठ एवं अनुवाद' विषय पर एक साहित्य मंच का आयोजन किया. स्वागत भाषण में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर के लिए 'गुरुदेव' का संबोधन ही उनके व्यक्तित्व की विराटता को प्रदर्शित करता है.उन्होंने साहित्य अकादमी द्वारा उनकी जन्मशतवार्षिकी से लेकर अभी तक आयोजित किए गए कार्यक्रमों की जानकारी भी दी. कार्यक्रम में हिंदी बाङ्ला के कई प्रसिद्ध लेखक एवं अनुवाद उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन अंग्रेज़ी संपादक स्नेहा चौधुरी ने किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही अंग्रेजी लेखिका एवं साहित्य अकादमी के अंग्रेजी भाषा परामर्श मंडल की संयोजिका संयुक्ता दासगुप्ता ने कहा कि अनुवाद अपने आप में एक नया सृजन है और इसमें जिस भाषा में अनुवाद कर रहे हैं, उसकी संस्कृति को भी जानना समझना पड़ता है. उन्होंने गीतांजलि के अंग्रेज़ी अनुवाद की चर्चा करते हुए नोबल पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकादमी के हवाले से कई टिप्पणियों को उद्धृत करते हुए कहा कि टैगोर की कविताएं मूल बाङ्ला में अंग्रेजी अनुवादों से बेहतर हैं.
प्रख्यात हिंदी लेखक एवं अनुवादक प्रयाग शुक्ल ने 'रवींद्रनाथ टैगोर का सौंदर्य चिंतन' विषय पर बोलते हुए कहा कि टैगोर की दुनिया बहुत बड़ी है. उसमें जितना ही उतरा जाए उतना ही विस्तार मिलता जाता है. रवींद्रनाथ टैगोर ने 'सुंदरता' की सार्थकता उसके 'अच्छे' होने में देखा है. उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के सौंदर्य चिंतन पर प्रकाशित एक अंग्रेज़ी पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा कि रवींद्रनाथ के लिए लय, संगीत और उनमें निबद्ध चीजों से बना कोई पूर्ण रूप ही सौंदर्य की सही पहचान है. अंग्रेज़ी लेखिका मालाश्री लाल ने 'टैगोर एवं स्त्री' विषय पर चर्चा करते हुए उनके कई पत्र और कविताएं प्रस्तुत की, जिसमें टैगोर ने स्त्री के सौंदर्य को विभिन्न दृष्टिकोणों से अंकित किया था. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कई कविताएं पत्र जैसी ही महसूस होती हैं. पंजाब विश्वविद्यालय, चंढीगढ़ से आए सुखदेव सिंह ने 'टैगोर एवं वाचिक संस्कृति' विषय पर बोलते हुए कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर का पंजाब से एक गहरा और आत्मीय रिश्ता रहा है. वे अपने पिता जी के साथ 12वर्ष की उम्र में लगभग 1 महीने अमृतसर में रहे थे और प्रतिदिन वहां के गुरुद्वारे में कीर्तन सुनने जाया करते थे. उन्होंने पंजाब के दो बड़े लेखकों बलवंत गार्गी और बलराज साहनी का जिक्र करते हुए कहा कि इन दोनों ने गुरुदेव के कहने पर ही अपनी मातृभाषा पंजाबी में लिखना शुरु किया. अंग्रेजी लेखिका राधा चक्रवर्ती ने 'मौलिक टैगोर: अनुवाद में टैगोर' विषय पर बोलते हुए कहा कि टैगोर एक अच्छे अनुवादक भी थे और उन्होंने कई अंग्रेजी अनुवाद किए थे.