वाराणसीः यों तो यह कार्यक्रम काफी पहले से तय था पर समलैंगिकता पर आए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद इसका महत्त्व काफी बढ़ गया था. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय ने प्लैटिनम जुबली व्याख्यानमाला के तहत जब 'किन्नर समाज और साहित्यविषय को उठायातो सभागार खचाखच भर गया. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर सेल की प्रमुख और देश की प्रथम ट्रांसजेंडर प्रिंसिपल डॉ मनोबी वंदोपाध्याय थी. अपने उद्बोधन में मनोबी ने कहा कि उनके जीने और जय हासिल करने की सर्वमंगल प्रेरणा के लिए वे खुद को ही मानती हैं. बहुत तिरस्कारविरोधउपेक्षा के बावजूद जीवन की सुंदरता पर से उनका विश्वास न तो कम हुआ और न ही उन्होंने हार मानीजबकि स्थितियां आज भी उन जैसों के लिए आसान नहीं है. उन्होंने छात्राओं से संवाद किया और अपने बहुत से अनुभवों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि मेरी तक़लीफों का सामना करती हुई मेरी मां बीमार हुई और अब नहीं रही. मैंने बहुत एब्यूज़ झेले हैं. अपनी शख्सियत के विषय में उन्होंने कहा कि शादी के बाद लड़कियां गोत्रांतरित होती हैं और मैं लिंगांतरित हूं. मैं ट्रांसजेंडर हूं. मुझे खुद से प्यार है. अपने एकांत से प्यार है. अपने व्यक्तित्वांतरण को उन्होंने मेटामारफोसिस कहा.

 

मनोबी को छात्राओं ने दुखों को उत्सव में बदल देने वाली शख्सियत कहा. इस अवसर पर किन्नर कथा के लेखक महेंद्र भीष्म ने भी शिरकत की. प्रियंका नारायण ने किन्नर ट्रांसजेंडर तृतीय लिंग हिजड़ा जैसे पारिभाषिकों की जैविकी मनोविज्ञान और साहित्य में प्रवेश कर विषय की स्थापना की. महिला महाविद्यालय काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्राचार्या चंद्रकला त्रिपाठी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हमारे लोकतंत्र नेकानून नेबुद्धिजीवियों ने एक अधिक मानवीय और आधुनिक दुनिया की ओर क़दम बढ़ा दिया है. इससे हम जेंडर आधारित विषमताओं से घृणा करना सीखेंगे और सबकी निजताओं का सम्मान करते हुए समानता अर्जित करेंगे. आज मनोबी हमारे लिए एक विशिष्ट व्यक्तित्व हैं. इस अवसर पर अपनी एक कविता की चंद पंक्तियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि- हम उनके दुखों को समझ कर पृथ्वी का अंधेरा कम करेंक्योंकि पृथ्वी सिर्फ हमारी नहीं उनकी भी है. प्रो रीता सिंह ने व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए ट्रांसजेंडर का विस्तृत सामाजिक संदर्भ लेकर बात की. डॉ अरुण कुमार सिंह ने आभार व्यक्त करते हुए छात्र-छात्राओं के बौद्धिक-मानवीय सवालों की सराहना की. संचालन डॉ पद्मिनी रवीन्द्र नाथ ने किया और बीए तृतीय वर्ष की छात्रा रश्मि झा ने इंटरैक्शन सत्र को संचालित किया.