'छाया मत छूना मन/ होगा दुख दूना मन/ यश है न वैभव है, मान है न सरमाया/ जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया/ प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्‍णा है/ हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है/ जो है यथार्थ कठिन/ उसका तू कर पूजन- छाया मत छूना मन/ होगा दुख दूना मन', संवेदना और दुख को व्यक्त करने वाली इन पंक्तियों के लेखक कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म आज की ही तारीख को साल 1924 में ग्वालियर में हुआ था. उन्होंने एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी एक अलग छाप छोड़ी. गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई. बाद में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से बी.ए. लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.ए. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की.

 

गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत 1934 में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई. वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और साल 1941 में अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से लिखवायी. उनकी आधुनिक रचनाएं द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त हैं, जिन पर भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का भी भरपूर प्रभाव पड़ा. साल 1943 में अज्ञेय द्वारा संपा दित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी रहे. 'तारसप्तक' की उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है. कविता के अतिरिक्त उन्होंने एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखा. उनके द्वारा रचित मंदार, मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले आदि काव्य-संग्रह तथा खंड काव्य पृथ्वीकल्प प्रकाशित हुए. 

 

उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा कहानी, नाटक तथा आलोचनाएं भी लिखीं. उनका लिखा भावान्तर गीत 'हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन, हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन…समूह गान के रूप में अब तक के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में से एक है. उन्हें कविता-संग्रह 'मैं वक्त के सामने" के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा केके बिड़ला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित 'व्यास सम्मान' के अलावा शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है. 'मुझे और अभी कहना है' गिरिजाकुमार माथुर की काव्य-यात्रा की एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है.

 

जागरण हिंदी की ओर से छाया मत छूना मन वाले कवि को हार्दिक नमन!