रायपुर: छत्तीसगढ़ साहित्य महोत्सव एवं 18वें राष्ट्रीय किताब मेला के दौरान व्यंग्य विमर्श का आयोजन हुआ. जिस दौरान कई अच्छी कार्यक्रम हुए. 'व्यंग्य की कमज़ोर होती धार और साहस का संकट' विषय पर जहां गिरीश पंकज, स्नेहलता पाठक, अख्तर अली, विनोद साव, रवि श्रीवास्तव, लालित्य ललित, कुलविंदर सिंह छाबड़ा, महेंद्र ठाकुर की सहभागिता रही और इस सत्र के सूत्रधार सुभाष मिश्र रहे वहीं 'संविधान और लोकतंत्र के मूल्य' सत्र में डॉ राजेन्द्र मिश्र, सुशील त्रिवेदी, भालचन्द्र जोशी के साथ प्रेम जनमेजय ने भी सहभगिता निभाई. वरिष्ठ व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय के अनुसार, छत्तीसगढ़ साहित्य महोत्सव में व्यंग्य विमर्श का सत्र विचार विमर्श की दृष्टि से काफी विचारोत्तेजक रहा. श्रोताओं के रूप में देश के नामीगिरामी कवि और कथाकार शामिल रहे, जिनमें अरुण कमल, विष्णु नागर,अजय तिवारी, भालचन्द्र जोशी, राजशेखर चौबे आदि नाम उल्लेखनीय हैं.
'व्यंग्य की कमज़ोर होती धार और साहस का संकट' जैसे व्यापक विषय पर प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय का कहना था कि आज के समय में साहस का संकट सम्पूर्ण साहित्य के समक्ष प्रश्नचिन्ह बना खड़ा है. आज हमारे जीवन मे सम्बन्ध गांठने वाले मोची, और परोसना शब्द गायब हैं. हिंदी व्यंग्य में आपके टूल, चाकू छुरी तेज करने वाला आलोचक गायब है. यूज़ एंड थ्रो वाले बाज़ारी समय में, सोशल मीडिया में बाहरी चमक से लिप्त व्यंग्य में से चिंतन गायब है, उसकी आत्मा गायब है. इस अवसर पर गिरीश पंकज, रवि श्रीवास्तव, विनोद साव, स्नेहलता पाठक, महेंद्र ठाकुर और गुलबीर भाटिया ने विस्तार से पनी बात कही. इनकी बातें सुनकर लगा कि व्यंग्यकार केवल व्यंग्य लिख ही नहीं रहे हैं अपितु गंभीरता से व्यंग्य पर विमर्श भी कर रहे हैं. एक अलग तरह के विषय पर चर्चा, समृद्ध श्रोताओं की उपस्थिति और सुधीर शर्मा के कुशल संचालन ने इस सत्र को एक पाठशाला-सा बना दिया. सत्यनारायण शर्मा की विशेष उपस्थित भी रही. इस अवसर पर विनोद साव के व्यंग्य संकलन 'धराशायी होने का सिलसिला' और स्नेहलता पाठक की कृति का लोकार्पण भी हुआ.