नई दिल्लीः प्राचीन संस्कृतियों वाले देश चीन और भारत के संबंध बहुत पुराने हैं. इन संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में ची श्येनलिन जैसे विद्वानों की बड़ी भूमिका रही है. भारत ने भी ची श्येनलिन को अपने प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित कर इस सम्बन्ध की गहराई को मान दिया है. हिंदी में ऐसे विद्वान की जीवनी का आना चीन और भारत के संबंधों को नयी आत्मीयता प्रदान करेगा. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आयोजित एक समारोह में कहा कि सांस्कृतिक गतिविधियों से दोनों देशों की नजदीकियों को बढ़ाने में मदद मिलेगी. हरिवंश ने प्रकाशन संस्थान द्वारा प्रकाशित ची श्येनलिन की जीवनी के हिंदी अनुवाद का लोकार्पण भी किया. मूल चीनी से इस विशाल जीवनी का अनुवाद एक साथ हिंदी और अंगरेजी में हुआ है. अंग्रेजी संस्करण का भी लोकार्पण हुआ, जिसे पेंटागन प्रेस ने प्रकाशित किया है. समारोह में चीनी दूतावास के उप प्रमुख ली पीच्येन ने चीनी ग्रंथों के अनुवाद के सम्बन्ध में चीन सरकार द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि अब तक पचास से अधिक चीनी ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद हो चुका है. ली पीच्येन ने कहा कि दोनों देशों का निकट आना सभी दृष्टियों से लाभप्रद और आवश्यक है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एम जगदीश कुमार ने भारतीय संस्कृति की विविधता को समझने हेतु दो संस्कृत की दो पुरानी सूक्तियों  'एकम सत्य बहुदा वदन्ति' और 'वसुधैव कुटुम्बकम' का उदाहरण दिया.

 

पुस्तक चर्चा में प्रो. स्वर्ण सिंह ने कहा कि यह ग्रन्थ केवल ची श्येनलिन के जीवन को ही नहीं अपितु चीन के जनजीवन के सम्बन्ध में भी बहुत उपयोगी है. कवि मदन कश्यप ने कहा कि इतिहासबोध को भारत में विकसित करने में पश्चिम विद्वानों के अलावा दो चीनियों ह्वेनसांग और फाह्यान का भी महत्वपूर्ण योगदान है, जिसे श्येनलिन ने प्राचीन इतिहास , सभ्यता , संस्कृति और अर्थव्यवस्था आदि के माध्यम से एक नई ऊंचाई दी है. हिन्दू कॉलेज के डॉ पल्लव ने कहा कि गौतम बुद्ध दोनों देशों की महान सभ्यताओं को जोड़ने का काम करते हैं, जिसे ची श्येनलिन ने अपने अनुवादों और भारत सम्बन्धी अध्ययन से आगे बढ़ाया। उन्होंने एक गद्यकार के रूप में श्येनलिन की चर्चा करते हुए कहा कि स्वयं श्येनलिन ने लिखा है कि गद्य विवरणात्मक है तो भी उसमें अहसास का अनुभव होना चाहिए, सुस्त गद्य मुझे पसंद नहीं. आयोजन में पुस्तक के अनुवादक बी आर दीपक ने अनुवाद के अनुभव सुनाए और चीन में व्यतीत अपने प्रवास का स्मरण किया. अध्यक्षता कर रहे भारतीय भाषा केंद्र के अध्यक्ष प्रो ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि पुस्तक-अनुवाद के माध्यम से चीन सभ्यता, संस्कृति, विचार और जीवनचर्या आदि को समझा जा सकता है. कार्यक्रम का संचालन रवींद्र त्रिपाठी और धन्यवाद ज्ञापन हरीशचंद्र शर्मा ने किया. आयोजन में बड़ी संख्या में लेखक, प्राध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित थे.