भोपालः लोककथाओं के मंचन में मध्य प्रदेश के कलाकारों का कोई मुकाबला नहीं है. स्थानीय मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय सभागार में 'अभिनयन' के तहत सागर के लीलाधर रैकवार के निर्देशन में बुंदेली स्वांग शैली में 'आगईं पूना बावरी' का मंचन हुआ. इस नाटक के केंद्र में एक चरवाहा है, जो अपने मामा-मामी के साथ रहता है. चरवाहे का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है. एक दिन चरवाहे को एक परी मिलती है और वह परी जीवन की कठिनाइयों से लड़ने में चरवाहे की सहायता करती है. परी की मदद के कारण ही चरवाहा अपने जीवन को सुधार लेता है और सकारात्मक कार्य में पूर्ण आत्मविश्वास के साथ लग जाता है. इसी के साथ नाटक 'आगईं पूना बावरी' का अंत होता है. इस नाट्य की समय सीमा लगभग 1 घण्टा रही.
नाट्य प्रस्तुति के दौरान कलाकारों ने 'ढिमरयाई लोक नृत्य' भी प्रस्तुत किया. यह नृत्य बुन्देलखण्ड क्षेत्र में किया जाने वाला पुरुष प्रधान लोक नृत्य है.  इस नृत्य में कलाकार सारंगी को लेकर गायन एवं नृत्य प्रस्तुत करते हैं. पुराने समय में राजदरबार के संदेशों को स्वांग शैली के माध्यम से प्रचारित किया जाता था. साथ ही समाज में सकारात्मक संदेश देने और मनोरंजन के लिए भी इस शैली का प्रयोग किया जाता था. नाट्यप्रस्तुति के दौरान मंच पर लीलाधर रैकवार, चऊदे रैकवार, खचोरी रैकवार, पूरन रैकवार, डालचंद रैकवार और कल्लू रैकवार आदि ने अपने अभिनय कौशल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. प्रस्तुति के दौरान गायन में लीलाधर रैकवार, अमरदीप रैकवार, प्रकाश रैकवार और मुन्ना सेन ने, सारंगी पर लीलाधर रैकवार, पूरन रैकवार और चुन्नीलाल रैकवार ने, ढोलक पर अमर रैकवार ने, झींका पर दिनेश कोरी ने और लोटा वादन में भागीरथ रैकवार ने सहयोग किया. इस प्रस्तुति का निर्देशन लीलाधर रैकवार ने किया है. लीलाधर रैकवार कई वर्षों से रंग कर्म के क्षेत्र से जुड़े हैं. लीलाधर रैकवार ने कई प्रस्तुतियों का निर्देशन करने के साथ ही साथ अभिनय भी किया है.