नई दिल्लीः 'गुनगुना लें' समूह के तत्वावधान में ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें देश के विभिन्न अंचलों के कवियों ने अपनी कविताओं से समां बांध दिया. सम्मेलन की अध्यक्षता छंद मर्मज्ञ बृजेन्द्र हर्ष ने की. समूह के संरक्षक गीतकार डॉ जयसिंह आर्य ने मुख्य अतिथि राजकुमार निजात, विशिष्ट अतिथि केसर कमल, डॉ सविता चड्ढा और हरगोबिन्द झाम्ब कमल, संयोजक भारत भूषण वर्मा और संचालक संजय जैन सहित सभी कवियों का स्वागत किया. मोनिका शर्मा की सरस्वती वंदना के साथ कवि सम्मेलन की शुरुआत हुई.
 बृजेन्द्र हर्ष ने सुनाया, “हर हाथ में किस्मत ने खींच दी लकीर है. वो क्या करेगा जो, लकीर का फकीर है…” डॉ जयसिंह आर्य ने पढ़ा, “खोजो वे नये रास्ते, जिन रास्तों का मक़सद ही, भटके हुए इन्सां को इन्सान बनाना हो…” राजकुमार निजात की कविता के बोल थे, “जब प्रभात मेरे घर आयी मैं समझा कि तुम आये होबदरी ने बूंदें छलकायी, मैं समझा कि तुम आये हो…
इस अवसर पर हरगोबिन्द झाम्ब कमल ने अपनी कविता से सम्मेलन को प्रेम रस की तरफ मोड़ दिया. उनकी कविता के बोल थे, “किया नहीं जाता कभी प्यार, ये तो स्वत: हो जाता है.
 इसका रिश्ता रूह से होता है, रूह में आन समाता है…कवि केसर कमल ने भी उन्हीं की राह पकड़ी और सुनाया, “प्यार का एक दीपक जलाकर तो देखो. अंधेरा धरा का मिटाकर तो देखो…डॉ सविता चड्ढा ने 'मां' को समर्पित बहुत ही उत्प्रेरक कविता सुनाई. कवि भारत भूषण वर्मा ने बेहतरीन मनहरण घनाक्षरी सुनाई. इनके अतिरिक्त संजय जैन, श्रीकृष्ण निर्मल, कृष्ण गोपाल सोलंकी, मोनिका शर्मा, नरेन्द्र शर्मा खामोश, आरजे योगी, सूरजपाल सिंह सूरज, प्रीतम सिंह प्रीतम, नरेश कुमार, अनुपिन्द्रसिंह अनूप, आराधना सिंह अनु, नरेश लाभ, सन्तोष त्रिपाठी और रचना सिंह वानिया ने भी बेहतरीन काव्य-पाठ किया.