नई दिल्ली: साहित्योत्सव के चौथे दिन 'भारतीय साहित्य में गाँधी' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन अंग्रेज़ी कवि एवं लेखक जयंत महापात्र ने किया. अपने उद्घाटन वक्तव्य में जयंत महापात्र ने कहा कि मैं महात्मा गाँधी के बारे में बोलते हुए अपने को बहुत छोटा पाता हूं. मैंने उन पर एक लंबी कविता 1970 में लिखी थी जिसमें मैंने उनके पूरे व्यक्तित्व पर एक टिप्पणी की थी. उस कविता में मैंने यह भी बताने की कोशिश की थी उनके द्वारा प्रयुक्त किए गए बहुत से शब्दों के अर्थ मैं बहुत बाद में समझ पाया. अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार तथा समाहार वक्तव्य साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक द्वारा किया गया. विशिष्ट अतिथि अरमूगम परसुरामन ने कहा कि गांधी से पूरी विश्व राजनीति प्रभावित रही है और मैं स्वीकार करता हूं कि मेरे राजनीति जीवन पर भी उनका असर है. गाँधी ने कई बार मुझे रास्ता दिखाया है. उन्हीं की प्रेरणा से मैं समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित होता हूं.
बीज भाषण में सुधीर चंद्रा ने गाँधी जी द्वारा कहे उन शब्दों के पीछे की परिस्थितियों को समझने के लिए आग्रह किया जिनमें वे अपने अंतिम दिनों में लगातार दुनिया से जाने की बात कर रहे हैं. यह स्थिति 30 जून 1947 के बाद के भाषणों में देखी जा सकती है. इससे पहले वे सामान्यता 125 वर्ष तक जीने की बात करते हैं लेकिन फिर अचानक अपने अभी तक जिंदा रहने पर भी सवाल उठाने लगते हैं ? आगे उन्होंने कहा कि गाँधी की मृत्यु पर भी उस समय राजनीतिक हलकों में जो प्रतिक्रिया हुई वे भी परेशान करनेवाली थीं. आज हम सबको इन परिस्थितियों के लिए कौन जिम्मेदार था ? इस पर चर्चा अवश्य करनी चाहिए.