शिमलाः शिमला के कैदियों द्वारा चलाया जा रहा ऐतिहासिक बुक कैफे फिलहाल अदालत के आदेश से निजी हाथों में जाने से बच गया है, पर ऐसा कब तक रहेगा, कहना मुश्किल है. बहरहाल प्रदेश के साहित्यकारों और पुस्तकप्रेमियों के साथ समाजसेवियों ने भी अदालत के इस फैसले पर खुशी जाहिर की है. हिमाचल हाईकोर्ट ने नगर निगम द्वारा शिमला रिज स्थित ऐतिहासिक टका बैंच के पास संचालित बुक कैफे को निजी हाथों में सौंपने के टेंडर पर रोक लगा दी है. शिमला नगर निगम ने सजायाफ्ता कैदियों द्वारा चलाए जा रहे इस बुक कैफे को उनसे छीनकर 13 लाख रुपए के टेंडर पर निजी हाथों को सौंपा था. मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी और न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी की खंडपीठ ने सजायाफ्ता कैदी जयचंद की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह अंतरिम आदेश पारित किए हैं.
हाईकोर्ट ने नगर निगम शिमला को याचिका का जवाब 13 नवंबर तक दाखिल करने के आदेश जारी किए गए हैं. जानकारी के अनुसार, हिमाचल पुलिस विभाग की ओर से डीजीपी जेल और सुधारात्मक सेवाएं ने कैदियों को काम देने के लिए पहल की थी. जेल विभाग ने सजायाफ्ता कैदियों को उनके और उनके परिवार के लिए गुजर-बसर के लिए रोजगार मुहैया करवाया था. कैदियों के बनाए बेकरी उत्पाद यहां बेचे जाते थे. कैदी ही इस बुक कैफे का संचालन करते थे. लेकिन हाल ही में नगर निगम ने यह कैफे निजी हाथों को सौंपा था और 13 लाख में इसका टेंडर हुआ था. क्योंकि यह कैफे नगर निगम के दायरे में चलाया जा रहा था, इसलिए इसका 80 फीसदी लाभ भी उसे ही जाता था. जब बुक कैफे पिछले 2 साल से सुचारू रूप से चल गया तो फूड चेन चलाने वाले कारोबारियों की नजर पड़ी और 10 साल के लिए बुक कैफे को लीज पर दे दिया गया. हालांकि साहित्यकारों के दबाव में मुख्यमंत्री ने भी इसके टेंडर का विरोध किया था.