आधुनिक हिंदी साहित्य के महत्त्वपूर्ण लेखकों में से एक कृष्ण बलदेव वैद का जन्म पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब के डिंगा में 27 जुलाई, 1927 को हुआ था. पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए और हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद वह हिंदी लेखन के साथ भारत और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी साहित्य के अध्यापक रहे, जिनमें दिल्ली का हंसराज कॉलेज, पंजाब विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क स्टेट युनिवर्सिटी और ब्रेंडाइज यूनिवर्सिटी शामिल है. वैद भारत भवन, भोपाल में 'निराला सृजनपीठ' के अध्यक्ष भी रहे और उन्होंने डायरी लेखन, कहानी और उपन्यास के अलावा नाटक और अनुवाद के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान दिया.

 

उनकी सौ से भी अधिक प्रकाशित पुस्तकों में उपन्यास- उसका बचपन, विमल उर्फ जाएं तो जाएं कहां, नसरीन, दूसरा न कोई, गुजरा हुआ जमाना, काला कोलाज, नर नारी, माया लोक, एक नौकरानी की डायरी, दर्द ला दवा; कहानी संग्रह- बीच का दरवाजा, मेरा दुश्मन, दूसरे किनारे से, लापता, आलाप, वह और मैं, उसके बयान, पिता की परछाइयां, चर्चित कहानियां, रात की सैर, बोधिसत्व की बीवी, बदचलन बीवियों का द्वीप, खामोशी, शाम हर रंग में, प्रवास-गंगा, अंत का उजाला; नाटक- भूख आग है, हमारी बुढ़िया, सवाल और स्वप्न, परिवार अखाड़ा, कहते हैं जिसको प्यार, मोनालिजा की मुस्कान; निबंध- शिकस्त की आवाज; संचयन- संशय के साए; डायरी- ख्याब है दीवाने का, जब आंख खुल गयी, डुबाया मुझ को होने ने खास हैं. अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किए, जो पाठक को 'चमत्कृत' करने के अलावा हिंदी के आधुनिक-लेखन में एक खास शैली के मौलिक-आविष्कार की दृष्टि से विशेष अर्थपूर्ण हैं.

 

जागरण हिंदी की ओर से कृष्ण बलदेव वैद को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और पाठकों के लिए उनकी डायरी का यह अंशः

1-9-2002
परिवार पीड़ा का दूसरा नाम. हर प्रकार और कोटि की पीड़ा का. लेकिन परिवार का कोई विकल्प अभी तक विकसित नहीं हुआ. भविष्य में हो सकेगा? परिवार पर हो रहे सब प्रहारों के बावजूद उसकी संभावनाएं अभी समाप्त नहीं हुई. संयुक्त परिवार तो अब भारत में भी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है. मैं ख़ुद परिवार पर कई प्रहार कर चुका हूं लेकिन परिवारमुक्त नहीं हुआ, न ही होना चाहता हूं.

परिवार और प्यार का आपसी बैर अनिवार्य है. दोनों को लचीला और खुला होना पड़ेगा. खुली शादी, खुला प्यार. नैतिकता को भी लचीला होना चाहिए. सुदूर भविष्य में मनुष्य का रूप क्या होगा. आज से दो या पांच या दस हज़ार बरस बाद? हो सकता है आज का परिवार तब अप्रासंगिक हो जाए, असंभव भी. आज का प्यार भी. जेनेटिक इंजनीयरिंग विकास प्रक्रिया को कैसे प्रभावित (विकृत?) करेगी? हर प्रकार के फ्रीक पैदा हो सकते हैं, किए जा सकते हैं.

 

नये मानव के बारे में श्री अरविंद का वैकल्पिक स्वप्न और प्रयास?