नई दिल्लीः कृष्ण जन्माष्टमी पर सोशल मीडिया पर लीलाधर खूब छाए हुए हैं. साहित्यिक रुचि वाले लेखकों, पाठकों और साहित्यकारों ने इस मौके पर श्रीकृष्ण से जुड़ी कई किताबों की चर्चा करते हुए तमाम बातें लिखीं. उनमें से दो लेखकों की बात यहां रख रहे. लेखक स्वप्निल श्रीवास्तव ने अपने पेज पर लिखा, मुझे मशहूर फिल्मकार और उर्दू के लेखक जावेद सिद्दकी का नाटक, श्याम रंग की याद आ रही है , जो कृष्ण के उत्तरजीवन पर आधारित है. वे द्वारिकाधीश हैं और सत्ता में एकदम अकेले हैं. उनकी रानियां सत्यभामा और रुक्मिणी उनके सामने महारास का प्रस्ताव रखती हैं. कृष्ण कहते हैं – मगर कैसे  होगा? यहां न तो गोपाल हैं न गोपियां, न जमुना न कदम्ब के लाल फूल, यहां न गाय की आवाज आती है, न बैलों के घुंघुरू बोलते हैं. यहां एक अकेली मुरली की तान गूंज कर क्या करेगी? और फिर मुरली भी तो नहीं है. वह वहीं है- बृन्दाबन में. मुरली के बिना रास कैसा? मुरली तो राधिका के पास है. दोनों महारानियां मुरली की खोज में राधिका के पास, बृन्दाबन जाती हैं. उनके सवाल-जबाब दिलचस्प हैं. उनका दम्भ टूट जाता है. यह नाटक हमें यह बताता है कि कृष्ण अपने अकेलेपन में कितने असहाय हैं. सत्ता के साथ वे सुखी नहीं हैं. उनके स्वर्णिम दिन पीछे छूट गए हैं. उत्तरजीवन की निःसंगता कितनी दारुण होती है. उनके जीवन में राधा के प्रेम की पूंजी है जो उनके अकेलेपन को सम्बल देती है. प्रेम जीवन का कितना अनिवार्य तत्व है, वह इस नाटक को पढ़ने के बाद पता चलता है. जावेद सिद्दकी ने इस नाटक में एक अकेले सम्राट की यंत्रणा को पकड़ने की कोशिश की है. यह नाटक 14 नवंबर 99 को पृथ्वी थियेटर में मंचित किया गया था. गीत गुलजार ने लिखे थे.

फिल्म समीक्षक और लेखक सुनील मिश्र इस अवसर पर भावना सोमैया की अंगरेजी में लिखी किताब ''केशवा: ए मैग्नीफिसेंट ऑब्‍सेशन'' का जिक्र करते हैं. उनके मुताबिक सिनेमा की अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्‍तकों की लेखिका, संपादिका और दृढ़ तथा तर्कसमृद्ध आलोचना के लिए प्रतिष्ठित भावना सोमैया के लिए यह किताब भक्ति, विशेष रूप से श्रीकृष्‍ण, उनकी अलौकिकता, दिव्‍य आभा, उनके नाम, मोहक आभूषण और हृदयजनित अभिप्रायों पर विश्‍व के पाठकों के लिए है. उन्होंने इस किताब पर लिखी अपनी समीक्षा भी शेयर की है. सृष्टि का कण-कण, तृण-तृण श्रीकृष्ण में समाया है और वे स्वयं कण-कण और तृण-तृण से उसी अभिप्राय से संबद्ध हैं. भावना सोमैया इस सूक्ष्म भाव के पीछे अनुभूतिजन्य आस्था को बहुत ही सहजता और सम्प्रेषण तरीके से रेखांकित करती हैं. लेखिका ने वेद, पुराण, भगवद्गीता और विभिन्न धर्म-ग्रंथों के आधार पर श्रीकृष्ण की मनोहारी छवि का दिव्य उद्घाटन किया है. श्रीकृष्ण के प्रति आसक्त और मुग्ध भम्र किस प्रकार उनमें सर्वस्व देखकर भाव विभोर होते हैं, इस सूक्ष्म मानवीय तत्व को वे अनुभवों की अपनी संवेदना से बूझकर लिखती हैं. केशव नाम अतिसुन्दर है, मैं ही परमात्मा, मैं ही आत्मा, मेरी ही प्रतिरूप से आत्मा का उद्भव और आत्मा के रूप में मैं ही अजर, अमर, अनादि और अनंत हूं, यह सम्प्रेषण विचार और विस्तार के अनन्य लोक में ले जाता है.

 भारतीय संस्कृति में कृष्ण केवल ईश्वर के अवतार भर नहीं, हमारी पहचान भी हैं. जागरण हिंदी की ओर से अपने पाठकों को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!