वाराणसीः संत कबीर और संत रैदास के भीतर लोक है. लोक के भीतर दोनों विभूतियां हैं. इनका लोक के साथ अनूठा तादात्म्य है. इन दोनों ने बेगमपुर रूपी वैचारिक कालोनी की परिकल्पना को सत्य करने करने के यत्न किए हैं. जिसमें सब अव्वल हैं. दोयम, तेयर जैसा कोई दर्जा ही नहीं है. यह कहना है काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर सदानंद शाही का. रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय काशी उत्सव में कबीर, रैदास की बानी और निर्गुण काशी' परिचर्चा सत्र को संबोधित करते हुए प्रो शाही ने कहा कि श्रम साधक संत कबीर और रैदास का लोक के साथ तादात्म्य अनूठा है. उन्होंने कि कबीर और रैदास का काल ऐसा था जब ईश्वर और भक्त के बीच बिचौलियों की जमात ने जड़ें जमा ली थीं. अपने-अपने स्वार्थ के अनुरूप ईश्वर और धर्म की व्याख्या की जाने लगी थी. रैदास जिस बेगमपुरा को बसाना चाहते हैं कबीर अपना घर जलाकर उसी बेगमपुरा की आधारशिला रखने की बात करते हैं. बेगमपुरा की उनकी परिकल्पना में कोई दोयम नहीं है, सभी अव्वल हैं. कबीर ईंट-गारे से बने घर को नहीं बल्कि वैचारिकी के स्तर में मानव को छोटा साबित करने वाले घर को जला कर रैदास के बेगमपुरा का समर्थन करते हैं. कबीर गायक पद्मश्री भारती बंधु ने कहा कि एक बालिका ने मुझसे पूछा कबीर के राम और तुलसी के राम में क्या अंतर है. मुझे तत्काल कुछ नहीं सूझा. मुझे सामने एक बिजली का तार दिखा. मैंने बालिका से पूछा वह क्या है. उसने बताया तार है. मैंने पूछा उसके अंदर क्या है. उसने कहा ऊर्जा है. तब मैंने कहा बिजली का तार तुलसी के राम हैं जो साकार हैं. उस तार के अंदर की ऊर्जा दिखती नहीं, वह कबीर के राम हैं.
डॉ उदय प्रताप सिंह का कहना था कि मन चंगा तो कठौती में गंगा कथन बाबा गोरखनाथ का है. वह रैदास से 400 साल पहले ही धरती पर आए थे. कबीर और रैदास रामानंदाचार्य से संस्कृत और हिंदी की शिक्षा लेते थे. याद रहे कि संस्कृति मंत्रालय और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय काशी उत्सव कई कारणों से साहित्य के हलके में लंबे समय तक याद किया जाएगा. खास बात की उत्सव का प्रत्येक दिन हिंदी साहित्य के सर्वकालिक दिग्गजों के नाम समर्पित था, जिसके तहत 'काशी के हस्ताक्षर','कबीर, रैदास की बानी और निर्गुण काशी' तथा 'कविता और कहानी- काशी की जुबानी' जैसे आयोजन हुए. पहले दिन प्रख्यात साहित्यकारों ने खड़ी बोली के पुरोधा भारतेंदु हरिश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद को याद किया, तो दूसरे दिन महान कवि संत रैदास और संत कबीरदास पर प्रकाश डाला गया. अंतिम दिन गोस्वामी तुलसीदास और मुंशी प्रेमचंद पर परिचर्चा सत्र हुआ, जिसमें विद्वानों ने अपने-अपने मत रखे. चर्चित वक्ताओं में डॉ सच्चिदानंद जोशी, प्रो मारूति नन्दन तिवारी, वीरेन्द्र मिश्र, प्रो निरंजन कुमार, लेखक, पत्रकार अनंत विजय, प्रो पूनम कुमारी सिंह, प्रो विश्वम्भरनाथ मिश्र और डॉ उदय प्रताप सिंह जैसे दिग्गज विद्वान शामिल रहे. सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में कुमार विश्वास ने जहां महोत्सव के पहले दिन 'मैं काशी हूं' पर प्रस्तुति दी, वहीं भाजपा सांसद और लोकगायक मनोज तिवारी ने अंतिम दिन 'तुलसी की काशी' पर संगीतमय प्रस्तुति दी. उत्सव में कलापिनी कोमकली, भुवनेश कोमकली, भारती बंधु, मैथिली ठाकुर जैसे कलाकारों ने भक्ति संगीत की प्रस्तुति दी.