नई दिल्लीः कश्मीरी पंडित अभी काफी चर्चा में हैं. एक लंबे निर्वासन के तीन दशक पर यह शब्द सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड करता रहा, फिर इसी विषय पर आई एक फिल्म ने भी इस समुदाय की पीड़ा को काफी बल दिया. पर इस दौर ने कश्मीर के उस गौरवशाली इतिहास को दबा सा दिया, जिसमें औरतें प्रधान थीं. कश्मीर पर लिखी अपनी पहली किताब रिफ्युजी कैंप से चर्चा में रहे लेखक आशीष कौल ने इतिहास के पन्नों में छिपी कश्मीर की अद्वितीय योद्धा, महानायिका रानी दिद्दा से महानायक अमिताभ बच्चन को मिलवाया. माध्यम बनी उनकी बेस्टसेलर  किताब 'दिद्दा-दि वारियर क्वीन ऑफ़ कश्मीर', जिसका लोकार्पण मुंबई में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने किया. कौल के मुताबिक, उनका उपन्यास 'दिद्दा-द वारीयर क्वीन ऑफ कश्मीर' अपनी तरह की एक अनूठी कहानी पर लिखा गया है. इस कहानी की नायिका दिद्दाके जीवन में व्यक्तिगत, सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक के साथ-साथ शारीरिक चुनौतियां तो हैं ही, उसकी कहानी को और दिलचस्प बनाती है उसके जीवन की वह यात्रा, जो एक अनचाही, शारीरिक रूप से विक्षिप्त, मां-बाप द्वारा त्याग दी गयी नन्हीं बच्ची से कश्मीर जैसे सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण साम्राज्य की सफलतम रानी बना देती है.  
इस उपन्यास के माध्यम से कौल ने कश्मीर की भुला सी दी गई नायिका दिद्दा के उस रणनीतिज्ञ दिमाग को समझने की कोशिश की है, जिसके चलते महमूद गजनी जैसे दुर्दांत हमलावर को एक नहीं दो-दो बार मुंह की खानी पड़ी. इतना ही नहीं दिद्दा ने ईरान के राजा की 32800 के योद्धाओं की सेना को अपने सिर्फ 500 सैनिकों  वाली  सेना की मदद से न सिर्फ 44 मिनट में काबुल के युद्ध में हराया, बल्कि देश की सीमाओं को 44 साल तक सुरक्षित रखा. दिद्दा ने न केवल युद्ध जीते बल्कि पुरुष सत्तात्मक समाज के बने बनाए नियम तोड़े और अपने नियम बनाए. लेखक आशीष कौल का दावा है, "भारत और विशेषकर कश्मीर में कई ऐसी महिलाएं हुई, जिन्होंने कई महत्त्वपूर्ण खोज और व्यवस्था की नींव रखी, फिर चाहे वो सहकारी बैंक हों, जल व्यवस्था हो या फिर प्रजातांत्रिक व्यवस्था ही क्यों न हो, यहां तक की विश्व की पहली वैतनिक सेना भी कश्मीर की रानी ने ही दी. विडंबना यह है कि एक के बाद एक आये आक्रांताओं और इतिहासकारों ने इतिहास को जिस तरह से लिखा उसमें इन रानियों का योगदान गौण कर दिया गया और उन सारी व्यवस्थाओं और की गयी खोज का श्रेय पश्चिम को दे दिया गया. उनकी कोशिश है कि कश्मीर और देश की गौरवशाली स्त्री कथा से नई पीढ़ी को अवगत कराया जाए.