नई दिल्लीः कोरोना काल में लंबे समय बाद किसी साहित्यकार, आलोचक के जन्मदिन पर उसके शुभेच्छुओं, शिष्यों और साहित्यप्रेमियों ने सोशल मीडिया पर ही सही जमकर न केवल बधाइयां दीं, बल्कि उनके बारे में टिप्पणियां भी लिखीं. प्रख्यात कवि, आलोचक तथा साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी इस बीस जून को अस्सी के हो गए. इस अवसर पर उनके शिष्यों ने कृतित्व को याद किया. तिवारी मूलत: कवि हैं किन्तु एक तटस्थ आलोचक के रूप में भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई. 'नये साहित्य का तर्कशास्त्र', 'आधुनिक हिन्दी कविता', 'समकालीन हिन्दी कविता', 'हजारीप्रसाद द्विवेदी', 'रचना के सरोकार', 'गद्य के प्रतिमान', 'छायावादोत्तर हिन्दी गद्य साहित्य', 'कविता क्या है?', 'आलोचना के हाशिए पर', 'कबीर', 'कुबेरनाथ राय', 'गद्य का परिवेश' आदि उनकी प्रमुख आलोचना पुस्तकें हैं.
आचार और विचार दोनों में गांधी को अपनाने की कोशिश करने वाले तिवारी ने गद्य और पद्य सब पर गहरी संलग्नता से लिखा. रचना के सरोकार अट्ठाइस निबंधों का संग्रह है. परंपरा और आधुनिकता, अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य और प्रतिबद्धता, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय भावना, रचनात्मक ईमानदारी, अनुभूति की प्रामाणिकता, काव्य भाषा, श्लीलता-अश्लीलता, रचना की भारतीय अवधारणा, संप्रेषण और प्रासंगिकता जैसे विषयों पर उन्होंने अत्यंत गंभीरतापूर्वक लिखा. प्रेमचंद के साहित्य और विचार से लेकर उन्होंने आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पं. रामविलास शर्मा, डॉ नामवर सिंह और अशोक वाजपेयी के साहित्यिक अवदान तक पर लिखा. पर उनकी खासियत यह रही कि अपने समय की साहित्यिक हलचलों में सक्रिय रहते हुए भी वह कभी किसी गुट से नहीं जुड़े. गोरखपुर जैसी जगह से 'दस्तावेज' जैसी साहित्यिक पत्रिका का निरंतर संपादन भी उनके साहित्यिक लगाव को उजागर करता है. अपने अध्यापन काल में उन्होंने एक बड़ी शिष्यमंडली तैयार की, जिसने उन्हें शिद्दत से बधाई दी.