नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने अपने प्रतिष्ठित कार्यक्रम 'कवि संधि' में प्रख्यात कवि एवं नाटककार नरेंद्र मोहन को आमंत्रित किया था. जहां नरेंद्र मोहन ने कविता-पाठ से पहले एक वक्तव्य भी दिया. उन्होंने कहा कि आज कविता हाशिए पर है और उसका स्पेस निरंतर छूटता जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि मेरे लिए कविता का स्पेस, मनुष्यता का स्पेस है और नए-नए प्रयोगों के साथ जीने का ढंग है. आगे उन्होंने कहा कि कविता के साथ ने मुझे जिलाए रखा है. मैं काव्य भाषा को लेकर अभी अभी नए-नए प्रयोग करता रहता हूं. कार्यक्रम का आरंभ उन्होंने देश के विभाजन संबंधी अपनी तीन चर्चित कविताओं से किया.  इस संदर्भ में उन्होंने बताया कि वे लाहौर में 12 साल रहे और उनकी कविताओं में यह दर्द अनायास आता जाता रहता है. उन्होंने इस शृंखला की – 'वह घर', 'दिल्ली में लाहौर, लाहौर में दिल्ली', 'मैं ही मरा हूँ आस-पास' कविताएं प्रस्तुत कीं.
नरेंद्र मोहन ने इसके बाद श्रोताओं को अपनी 'शब्द', 'प्रेम', 'उसके चले जाने के बाद' जैसी चर्चित कविताएं सुनाईं. उन्होंने पेंटिंग्स पर आधारित अपनी कविता शृंखला की भी कई कविताएं प्रस्तुत कीं. उनके द्वारा 'नाच' और 'कठपुतली' शृंखला की कविताएं भी श्रोताओं को बेहद पसंद आईं. नरेंद्र मोहन के कविता पाठ के बाद उपस्थित श्रोताओं के साथ संवाद सत्र के अंतर्गत उनसे उनकी रचना प्रक्रिया को लेकर कई सवाल भी पूछे गए, जिनके उन्होंने समूचित जवाब दिए. इस  कार्यक्रम में सत्यव्रत शास्त्री, कुसुम अंसल, सौमित्र मोहन, मोहनदास नैमिषराय, डॉ. सादिक, श्याम सिंह शशि, बी.एल. गौड़, कमल कुमार, डी.के. बहल, सुरेश शर्मा, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, ब्रजेंद्र त्रिपाठी एवं प्रताप सिंह आदि कवि एवं लेखक उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन हिंदी संपादक अनुपम तिवारी ने किया.