नई दिल्लीः बल्देव भाई शर्मा राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष के तौर पर इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें किताबें लिखने का मौका कब मिलता है, समझना मुश्किल, पर हाल ही में यश पब्लिकेशंस ने उनकी पुस्तक 'राष्ट्रीय चेतना के विविध आयाम' को बिक्री के लिए ऑनलाइन उपलब्ध कराने की बाकायदा सोशल मीडिया पर घोषणा की है. मशहूर लेखक- पत्रकार  रहे बल्देव भाई शर्मा पहले भी 'भारत सांस्कृतिक चेतना का अनुष्ठान', 'मेरे समय का भारत', 'आध्यात्मिक चेतना और सुगंधित जीवन', 'सहजता की भव्यता' और 'हमारे सुदर्शनजी' जैसी किताबें लिख चुके हैं. देश के लगभग सभी प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में ज्वलंत राष्ट्रीय व सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारपरक लेखों और प्रायः सभी प्रमुख टी.वी. व समाचार चैनलों पर आयोजित समसामयिक व राष्ट्रीय मुद्दों पर होनेवाली पैनल चर्चाओं में नियमित भागीदारी निभाने और देश के तमाम प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों व प्रमुख शैक्षिक संस्थाओं में शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रीयता पर व्याख्यान देने वाले प्रोफेसर बल्देव भाई का मानना है कि भारत की राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद को लेकर अंग्रेजों के समय से ही एक बेहद अलग छवि बनाने की साजिश की गई, जो बाद में भी कायम रही.

बल्देव भाई शर्मा का दावा है कि हमारे प्राचीन ग्रंथ हमारी राष्ट्रीय चेतना व सोच की स्पष्ट अभियक्ति रहे हैं. वह कहते हैं कि ऋग्वेद में उल्लेख है 'भद्रं इच्छन्ति ऋषयः', ऋषि लोककल्याण की कामना से जीवन जीते हैं. लोकहित के लिए सोचना और कर्म करना यही ऋषि की पहचान है. इसीलिए भारत को ऋषि-परंपरा का देश कहा जाता है. यह उन्हीं ऋषियों का उद्घोष है- सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत्.यानी सब सुखी हों, सब निरोग हों, सब एक-दूसरे की भलाई में रत रहें, किसी के कारण किसी को दुख न पहुंचे. भारत की संस्कृति इसी भावबोध का विस्तार है. हमारी ऋषि-परंपरा को आगे बढ़ाने वाले आद्य शंकराचार्य से लेकर संत तुलसीदास तक ने इसी सांस्कृतिक चेतना को परिपुष्ट किया है. इस तरह भारत विश्व को सुख-शांति-सद्भाव का मार्ग दिखानेवाली सांस्कृतिक चेतना का अधिष्ठान बन गया. भारत को जानना है तो इस संस्कृति के मर्म को जानना-समझना पड़ेगा. इसे 'सरवाइवल ऑफ द फिटैस्ट' जैसी पाश्चात्य या 'वर्ग संघर्ष' जैसी कम्युनिस्ट अवधारणाओं से नहीं जाना-समझा जा सकता. वह मानते हैं कि राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता पर उनकी किताबें गलत अवधारणाओं का निवारण कर जिज्ञासुओं को भारत और भारतीयता की सही अवधारणा बताने का एक प्रयास हैं.