नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर और राजकमल प्रकाशन ने राजधानी में अपना चौथा 'हिंदी साहित्य उत्सव' आयोजित किया. जिसमें अशोक वाजपेयी, अरुंधति रॉय, अनामिका, सविता सिंह और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे स्थापित नामों से लेकर हिमांशु बाजपेयी और सुजाता जैसे पहली किताब वाले लेखक भी शामिल हुए. दिन भर चला यह कार्यक्रम अलग-अलग सत्रों में बंटा था, जिसमें व्याख्यान, संगोष्ठी और पुस्तक के कवर आदि का लोकार्पण हुआ. अशोक वाजपेयी ने लेखकों का स्थायी भाव भय बताया और कहा कि लेखक को सबसे बड़ा डर होता है कि उसका लिखना व्यर्थ है और वह अंततः विफल होगा. अपर्याप्तता का बोध, परंपरा का डर, अकेले पड़ जाने का भय, दुर्व्याख्या का भय-ये सब होते हैं. कुछ भय हमारे समय में और बढ़ गए हैं. एक भय है सत्ता का, पिछले 50 सालों से हिंदी साहित्य सत्ता विरोधी रहा है. पहले भी व्यवस्था थी, लेकिन डर नहीं लगता था. अब डर लगने लगा है, झूठ की विपुलता का डर. उद्घाटन के बाद पहले सत्र में 'स्त्री: जीवन और साहित्य के बीच' में मशहूर लेखिका अनामिका, गीतांजलि श्री, अल्पना मिश्र एवं सुजाता से दिल्ली विश्वविद्यालय की पीएचडी छात्रा अनुपम सिंह ने बातचीत की. दूसरे सत्र में 'लेखन किसके लिए?' विषय पर सुरेन्द्र मोहन पाठक का व्याख्यान हुआ. उन्होंने कहा, 'लेखक सिर्फ और सिर्फ पाठक के लिए लिखता है, पाठक कंज्यूमर है, जैसे हलवाई अपने लिए मिठाई नहीं बनाता है, ग्राहक के लिए बनाता है वैसे ही राइटर को रीडर बनाता है, राइटर अपने आप को नहीं बनाता है. रीडर कंज्यूमर है, आपका लिखा प्रोडक्ट है और मैं मैन्युफैक्चरर हूँ. हमारा कारोबार लिखना है." बातचीत के बाद सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा के दूसरे भाग 'हम नहीं चंगे बुरा न कोय' किताब के कवर का लोकार्पण हुआ. यह किताब राजकमल प्रकाशन से शीघ्र प्रकाशित होने वाली है.
तीसरा सत्र कहानियों को समर्पित रहा. इस सत्र में साहित्यकार गौतम राजऋषि, सुजाता, विजयश्री तनवीर एवं हिमांशु वाजपयी ने अपने नए उपन्यास एवं कहानी संग्रह से कुछ अंश पढ़कर सुनाए. सत्र के अंत में सुमन परमार ने लेखिका नमिता गोखले के उपन्यास 'राग पहाड़ी' से एक छोटा सा अंश पढ़कर सुनाया. चौथा सत्र मनोहर श्याम जोशी के नाम रहा. इस मौके पर राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित संस्मरण 'पालतू बोहेमियन' (मनोहर श्याम जोशी की स्मृति कथा) किताब का लोकार्पण भी किया गया. पांचवा सत्र कविता पर आधारित रहा. सत्र 'कविता – कुछ और रंग' में शब्दों का अद्भुत रंग बिखेरा अनामिका, इला कुमार, प्रकृति करगेती, मृत्युंजय और सविता सिंह ने. इसके बाद 'एक मुलाक़ात अरुंधति राय के साथ' सत्र था, जिसमें अरुंधति रॉय की आगामी किताब 'एक था डॉक्टर एक था संत' के कवर का लोकार्पण भी किया गया. 'शब्द – काग़ज से स्क्रीन तक' सत्र में डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर अनवर जमाल, कथाकार गौतम राजऋषि, फ़िल्म समीक्षक मिहिर पंड्या शामिल थे. आख़िरी सत्र लेखक एवं दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी की प्रस्तुति 'दास्तान फलों के राजा की' के नाम रहा. राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी और एपीजे सुरेन्द्र ग्रुप की प्रीति पॉल ने सबका आभार जताया।