कुशीनगर: प्राचार्य, आलोचक, कवि और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का कहना है कि भारत में सौंदर्य की चर्चा प्राचीन काल से होती रही है, लेकिन सौंदर्य शास्त्र जैसा शब्द नया है. पश्चिम में सौंदर्य शास्त्र का विकास दर्शन के रूप में हुआ. अज्ञेय के साहित्य में सौंदर्य बोध देखना हो तो शिवत्व व सौंदर्य बोध एक साथ मिलाकर देखना होगा. भारतीय दृष्टि में सत्य, शिव और सुंदर तीनों के तार एक दूसरे से मिलते हैं. प्रो तिवारी अज्ञेय की 111 वीं जयंती पर विद्याश्री न्यास, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, भारतीय साहित्य संस्थान न्यास समिति व बुद्ध पीजी कालेज कुशीनगर के संयुक्त तत्वावधान में अज्ञेय स्मृति उपवन में आयोजित अज्ञेय की सौंदर्य दृष्टि विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि अज्ञेय ने शिवत्व बोध के साथ सौंदर्य बोध स्वीकार किया है. सौंदर्य मन में विकार नहीं उत्पन्न करता है. सौंदर्य प्रकृति का उज्ज्वल वरदान है. सृष्टि देवता की कविता है. सौंदर्य का प्रयोजन आनंद से है. पूर्व प्राचार्य डॉ अरुणेश नीरन ने कहा कि सौंदर्य वह है, जब दर्शक और दृश्य का भेद मिट जाता है. अज्ञेय की रचनाओं में एक सौंदर्य दृष्टि है. उन्होंने इसके माध्यम से काल को पकड़ने की कोशिश की है.
अज्ञेय के काव्य में सौंदर्य बोध पर बोलते हुए दीदउ गोरखपुर विवि के हिदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो अनंत मिश्र ने कहा कि भाषा बहुत साम‌र्थ्यवान होती है. सौंदर्य एक तरह की ईश्वरीय देन है. उसको परिभाषित नहीं किया जा सकता है. अज्ञेय अपनी रचनाओं में सौंदर्य व प्रेम की बात करते हुए गहरे मौन में लौटते हैं. सौंदर्य एक लय है व सृष्टि एक लय में है. तटस्थ दृष्टि के बिना सौंदर्य न तो देखा जा सकता है और न ही समझा जा सकता है. प्रो रामदेव शुक्ल ने कहा कि अज्ञेय की रचनाओं में स्त्रियों के प्रति जितनी कोमल भावनाएं मिलती हैं, वह अन्य लेखकों में नहीं मिलतीं. अज्ञेय के सौंदर्य दृष्टि में कहीं आक्रमकता नहीं, बल्कि करुणा है. उनका सौंदर्य बोध काफी उदात्त है. प्रो चितरंजन मिश्र ने अज्ञेय के कथेतर गद्य में सौंदर्य बोध विषय पर बोलते हुए कहा कि एक लेखक जिस दृष्टि से दुनिया को देखता है, वही उसका सौंदर्य दृष्टि होती है. अज्ञेय का सौंदर्य बोध शिवत्व के बोध से जुड़ा हुआ है. अज्ञेय के अनुसार जो सुंदर है, वह शिव है. अज्ञेय सुंदरता के साथ विवेक, अनुभव, प्रकृति और मनुष्य के संबंधों का प्रश्न उठाते हैं. अज्ञेय के काव्य मूल्य गतिशील हैं व प्रश्न उठाने वाले हैं. अध्यक्षता अज्ञेय साहित्य संस्थान के अध्यक्ष प्रो महेश्वर मिश्र ने की. प्राचार्य डॉ सिद्धार्थ पांडेय ने आभार व्यक्त किया. संचालन डॉ गौरव तिवारी ने किया. पूर्व प्राचार्य डॉ अमृतांशु शुक्ल, डॉ उर्मिला यादव, डॉ पी सैम, डॉ राजेश सिंह, डॉ केएन मिश्र, डॉ आरबी मिश्र, डॉ अंबिका तिवारी, डॉ शत्रुघ्न सिंह, डॉ योगेंद्र प्रताप सिंह, डॉ प्रभाकर मिश्र, डॉ निरंकार मणि त्रिपाठी आदि उपस्थित रहे.