नई दिल्लीः इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में जाने माने पत्रकार आलोक मेहता की नई किताब 'नमन नर्मदा' का लोकार्पण भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ पी रावत ने किया. इस मौके पर किताब के लोकार्पण के बहाने भारत की सबसे पवित्र मानी जाने वाली पौराणिक काल के उल्लेखों वाली और मध्यप्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी और उसके इर्द गिर्द पनपी करोड़ों साल पुरानी संस्कृति के बारे में भी गंभीर और सार्थक चर्चा हुई. लेखक-पत्रकार आलोक मेहता ने उन सभी जिज्ञासाओं का समाधान किया, जो इस पुस्तक की ज़रूरत को लेकर उठ रही थीं. याद रहे कि आलोक मेहता ख़ुद भी उज्जैन के निवासी हैं और क्षिप्रा तथा नर्मदा नदियों के आंचल में ही पले-बड़े हुए हैं. किताब को लेकर आलोक मेहता ने स्पष्ट किया कि नर्मदा का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्त्व स्वीकार किया गया है और इसे अंगरेज़ी में लिखने की वजह यह रही कि हम चाहते हैं कि विदेशों में भी लोग नर्मदा को, इसके महत्त्व को जानें. इससे दुनियाभर में नर्मदा की प्रतिष्ठा बढ़ेगी. देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भी नर्मदा पर काफी गहराई से अध्ययन किया है. उनका वक्तव्य भी सभा में मौजूद लोगों के लिए चौंकाने वाला रहा. प्रशासनिक अधिकारी के रूप में उन्होंने मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी विकास में अलग-अलग भूमिकाओं का निर्वहन किया और नर्मदा घाटी संस्कृति के संरक्षण को लेकर उनकी संवेदनना अब भी कायम है.

 

मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ पी रावत ने बड़ी बेबाक़ी से यह स्वीकार किया कि नर्मदा बचाओ आंदोलन ने एक दौर में बड़ी सार्थक भूमिका निभाई. इससे बांधों की डूब में आने वाले किसानों को ज़मीनों का बेहतर मुआवज़ा मिला और अंगरेज़ों के ज़माने से चले आ रहे क़ानून से मुक्ति मिली. लेकिन बाद में आंदोलन की रचनात्मक भूमिका नहीं रही. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने जब घाटी के किसानों की स्थिति का आंकलन किया तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जिनमें एक महत्त्वपूर्ण आंकलन तो यह था कि बड़े और संपन्न किसान नर्मदा किनारे अपने संसाधनों से खेती में सिंचाई तो करते थे, लेकिन छोटे किसान बड़े घाटे में रहते थे. उन्हें भी बड़े किसान पानी देते थे लेकिन बदले में फसल या उपज का बड़ा हिस्सा हड़प लेते थे. इस पर बड़ी मुश्किल से रोक लगी है. उन्होंने नर्मदा के यायावर अमृतलाल वेगड़ को श्रद्धा से याद किया, जिन्होंने नर्मदा की अनेक परिक्रमा कीं और इस प्राचीन संस्कृति के अनेक नए अध्याय खोजे. अनिल माधव दवे ने भी नर्मदा रहस्यों को उदघाटित करने में बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है. दुर्भाग्य से अब ये दोनों ही इस दुनिया से विदाई ले चुके हैं. रावत ने नर्मदा को प्रदूषित होने से बचाने और शोधपरक काम करने का आह्वान किया और समाज में पुस्तक और पुस्तकालयों की ज़रूरत को रेखांकित किया. कला केंद्र के सचिव सच्चिदानंद जोशी ने भी नर्मदा की प्राचीनता और इस क्षेत्र के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक प्रतीकों के संरक्षण पर ज़ोर दिया. डॉक्टर रमेश गौर ने पुस्तक पढ़ने और पुस्तकालय संस्कृति के विकास को बढ़ावा देने पर ज़ोर डाला. इस मौक़े पर राजधानी के विभिन्न क्षेत्रों के चुनिंदा प्रतिनिधि उपस्थित थे. जिनमें कला केंद्र के सचिव और शिक्षाविद सच्चिदानंद जोशी, इंटरनेशनल मेलोडी फाउंडेशन के डॉक्टर हरीश भल्ला, कला केंद्र के पुस्तकालय निदेशक डॉक्टर रमेश गौर, समाचार फॉर मीडिया के डिप्टी एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा, पत्रकार सुश्री मानसी की उपस्थिति उल्लेखनीय है.