वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय में 'बियांड द बायनरी: अ लुक एट जेंडर डायवर्सिटी' पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुद्गल ने किया. उन्होंने हिजड़ा समाज के बहिष्कार की अमानुषिक स्थितियों के भीतर लिंग वर्चस्व की प्रवृत्तियों से जारी सामाजिक अनुकूलन की ओर इशारा किया और अपने साहित्य अकादमी पुरस्कृत उपन्यास 'नाला सोपारा' में दर्ज किरदार के जीवन संघर्ष पर बात की. इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में किन्नर समाज की सलमा ने कहा कि हम पढ़ना चाहते हैं और अधिक से अधिक पढ़ने के बारे में जानना चाहते हैं. बीएचयू में आकर ऐसा लग रहा है कि हम यहां से पढ़ सकते हैं. उनकी आंखों में उम्मीद छलक रही थी.उन्होंने बताया कि जब उनके भीतर भिन्न लक्षण प्रकट होने लगे तो उनके साथ पढ़ने वालों ने और स्कूल ने भी बहुत परेशान किया और यह परेशानी बढ़ती गई. मां मर गई और जब मां मर जाती है तो पिता भी नहीं रहते. उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया. मगर मेरे जो गुरु हैं वे बहुत ख्याल रखते हैं. एक खूबसूरत उन्मुक्त शख्सियत सलमा ने कहा कि आपके घर मेरे जैसा कोई जनमे तो उसे बाहर मत निकालिएगा. हम लोग इंसान हैं आपकी तरह. बीए तृतीय वर्ष की छात्रा अंशुल ने मानोबी की आत्मकथा के हिस्से पढ़े.ममवि की पूर्व प्राचार्या प्रो सुशीला सिंह ने कहा कि यह संगोष्ठी अब केवल बौद्धिक, अकादमिक नहीं रह गई है बल्कि एक सक्रिय पहल बन गई है. यह सामाजिक ट्रासंफार्मेशन की ओर चल पड़ी है क्योंकि हम अपनी नवतर पीढ़ी को संबोधित कर रहे हैं. संयोजिका प्रो रीता सिंह ने संगोष्ठी के उद्देश्य को रेखांकित किया और बताया कि महिला अध्ययन केंद्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और महिला महाविद्यालय का यह सम्मिलित प्रयास है. प्रो शशि अग्रवाल, प्रो गीता राय, प्रो सुमन जैन, प्रो डॉ सरिता चौधरी, डॉ निधि सुनहरे, डॉ विभा त्रिपाठी, प्रो निधि शर्मा, प्रो अरूण कुमार सिंह, प्रो रोयना सिंह आदि ने पैनल डिस्कशन में भाग लिया.

 

इस संगोष्ठी के दौरान कुल आठ टैक्निकल सत्र भी हुए. विधि संकाय की डॉ विभा त्रिपाठी ने मानवाधिकारों का संदर्भ लिया. सिनेमा और रंगमंच का संदर्भ लिया महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के प्रतिकुलपति प्रो आनंद वर्धन ने. उन्होंने नाला सोपारा का संदर्भ लिया और बताया कि यह जोखिम भरे यथार्थ की ओर प्रस्थान है, जिससे नई संवेदनशीलता बढ़ रही है. नीरजा माधव ने यमदीप की रचना प्रक्रिया से जुड़े कई प्रसंग साझा किए. डॉ उषा शर्मा, डॉ कल्पना दुबे ने क्रमशः गढ़वाल के किन्नर समुदाय तथा देशज समाज में हिजड़ा संबंधी धारणाओं का पक्ष प्रस्तुत किया. इस सत्र का  संचालन प्रियंका नारायण ने किया.समापन सत्र से पहले छात्र छात्राओं ने मनोबी वंदोपाध्याय की आत्मकथा का नाट्यरुपांतरण प्रस्तुत किया. नेतृत्व किया पत्रकारिता विभाग की नेहा पांडेय ने. समापन सत्र के अध्यक्ष इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के मानविकी के निदेशक प्रो सत्यकाम ने ट्रांसजेंडर को विश्लेषित करने का बड़ा परिप्रेक्ष्य लिया और बताया कि औपनिवेशिक शासन में किन्नरों को अपराधियों की श्रेणी में दर्ज किया गया. इससे पहले महाभारत रामायण ही नहीं मुगलकाल में भी इनके तिरस्कार और बहिष्कार का संदर्भ नहीं मिलता. प्रो अर्चना सिंह, डॉ राखी गर्ग, प्रो कल्पना गुप्ता ने भी पैरेंट्स की काउंसलिंग से जुड़े महत्त्वपूर्ण बिंदु सुझाए. कंप्यूटर साइंस की अध्यापिका राखी गर्ग ने एक बहुत मार्मिक कविता सुनाई और कहा कि मुझे साहित्य ने अपने प्रभाव में ले लिया है. प्रो पूनम सिंह, डॉ नीलम अत्री, डॉ रीता जायसवाल, डॉ सरस्वती कुमारी, डॉ गौतम गीता, डॉ शैलजा सोनकरी, प्रो के एन तिवारी के योगदान के बीच विद्यार्थियों की शिरकत काबिलेतारीफ थी.