लखनऊः हिंदी कथा साहित्य में एक मुकाम हासिल कर चुके अखिल भारतीय आयोजन कथाक्रम में हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ कथाकार एसआर हरनोट को 27वें आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान से नवाजा गया. स्थानीय राय उमानाथबली सभागार में हुए इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि वरिष्ठ लेखिका मैत्रेयी पुष्पा की मौजूदगी में आयोजक शैलेंद्र सागर और कथाकार रवींद्र वर्मा ने हरनोट को सम्मानित किया. इस अवसर पर अपने उद्बोधन में मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि ईमानदारी लेखन की पहली शर्त है. लेखक को पुरस्कार मिले न मिले उसे याद नहीं रहता, पर कौन सी किताब पर पुरस्कार मिला, यह याद रहता है. हम गांव से आते हैं गांव को लिखते हैं. उन्होंने कहा कि जिसकी कलम जमीन नहीं छूती, तो उससे साहित्य कैसे लिखा जाएगा. हरनोट के साहित्य में धरती दिखती है. समारोह में अगले वक्ता के रूप में रवींद्र वर्मा ने कहा कि यह दौर पहाड़ को मैदान करने का है, सब कुछ समान करने का दौर है. हरनोट के कहानी संग्रह फणीश्वर नाथ रेणु के रचना संसार के निकट है, जिसमें जटिलताओं से दूर समाज के पहलुओं को उकेरा गया है. 

याद रहे कि 22 जनवरी, 1955 को हिमाचल प्रदेश में जन्मे हरनोट पहाड़ी जीवन, मिट्टी, जनजीवन, संस्कृति, परंपरा और प्रकृति में रमे कथाकार हैं. उनकी रचनाएं इंसान के संकट, संघर्ष और जिजीविषा का प्रमाणिक दस्तावेज हैं. उनकी कहानियों में समाज, हिमालय के रमणीक प्राकृतिक स्थल, जीव-जंतु, पक्षी, प्राकृतिक संपदा चरित्र के रूप में उभरकर पाठकों के सामने आते हैं. उन्हें हिमाचल राज्य अकादमी पुरस्कार, हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्यकार सम्मान, जेसी जोशी शब्द साधक सम्मान और इंदु शर्मा कथा सम्मान आदि से नवाजा जा चुका है. कथाक्रम के आयोजक शैलेंद्र सागर ने इस सम्मान की पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा की और बताया कि वर्ष 1997 में कथाक्रम सम्मान की शुरुआत हुई. मेरे पिता आनंद सागर मेरठ में जन्मे थे, उन्होंने जासूसी उपन्यास से शुरुआत की. उनके अजीजन-बी उपन्यास का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. उनकी याद में यह सम्मान अनवरत साहित्य जगत को समृद्ध करता आ रहा है.