नई दिल्लीः वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा को किसी अलहदा परिचय की दरकार नहीं है. 'संवाद' ने नासिरा शर्मा के उपन्यास 'अजनबी जज़ीरा' पर साहित्य अकादमी के रवींद्र भवन में एक संगोष्ठी आयोजित की, जिसमें उनके उपन्यास और लेखन पर वरिष्ठ लेखिका कुसुम अंसल ने उनसे विस्तार से चर्चा की. इस बातचीत में नासिरा शर्मा ने इस उपन्यास के लेखन-क्रम में ईरान-इराक़ युद्ध की त्रासद स्थितियों पर का खाका खींचा. उनका कहना था कि यह एक भूमि पर दो देशों के लोग एक साथ रहने और उनमें युद्ध की स्थितियों के बीच भी मनुष्यता के एक समाज की कहानी है. 'अजनबी जज़ीरा' युद्ध से आक्रांत धरती पर उपजी मनुष्यता की पीड़ा और त्रासदी का कथानक है. वाकई युद्ध की परिस्थितियों में अजनबी देश जाकर रहना और रिपोर्टिंग करना बहुत साहस का काम है, जिसे नासिरा शर्मा ने बखूबी किया. विशेष बात यह कि जब ऐसे हालातों की रिपोर्ताज कोई कथाकार करता है, तब वाकई यह एक शानदार काम होता है.
नासिरा शर्मा के लेखन में रचनात्मकता के कई मजबूत पड़ाव हैं, जिनमें साहित्य की विविधता का विशाल परिदृश्य दिखाई देता है. इस मौके पर राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अरबी, ईरानी, फारसी और उर्दू साहित्य में उनके द्वारा किए गए कार्य, अनुवाद की पर एक वृत्तचित्र भी दिखाया गया. कार्यक्रम में सादिक़ हिदायत के लघु उपन्यास 'अन्धा उल्लू' जिसका 22भाषाओं में अनुवाद किया गया है, भी नासिरा शर्मा के अनुवाद में शामिल है. इस पुस्तक पर भी चर्चा हुई. याद रहे कि नासिरा शर्मा के लेखन की सर्वोपरि विशेषता है सभ्यता, संस्कृति और मानवीय नियति के आत्मबल व अन्तःसंघर्ष का संवेदना-सम्पन्न चित्रण. उनके कथा साहित्य के सरोकार ग्लोबल हैं. उनका कथाकार सन्तप्त और उत्पीड़ित मनुष्यता के पक्ष में पूरी शक्ति के साथ निरन्तर सक्रिय रहा है. 'अजनबी जज़ीरा' में समीरा और उसकी पाँच बेटियों के माध्यम से इराक़ की बदहाली बयान की गई है. पतिविहीना समीरा अपनी युवा होती बेटियों के वर्तमान और भविष्य को लेकर फिक्रमंद है. बारूद, विध्वंस और विनाश के बीच समीरा ज़िन्दगी की रोशनी व ख़ुशबू बचाने के लिए जूझ रही है. उपन्यास समीरा को चाहने वाले अंग्रेज़ फ़ौजी मार्क के पक्ष से क्षत-विक्षत इराक़ की एक मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत करता है. घृणा और प्रेम का सघन अन्तर्द्वन्द्व इस उपन्यास को अपूर्व बनाता है.