कला, साहित्य में गहरी रुचि रखने वाले संगीत अध्येता यतींद्र मिश्र का आज जन्मदिन है, पर उन्होंने शुरुआत कविता से की थी. अयोध्या राजघराने से ताल्लुक रखने और महल में निवास करने वाले यतींद्र के लेखन की खासियत यह है कि जहां उन्होंने गद्य व ललित निबंधों में समाज के अभिजात्य व किंवदंती सरीखे महानायकों के बारे में लिखा जिनमें नृत्यांगना सोनल मानसिंह, शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, ठुमरी गायिका गिरिजा देवी,  और सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और बेगम अख़्तर जैसी शख्सियतें व  कुंवर नारायण, विद्यानिवास मिश्र, श्रीलाल शुक्ल, अशोक वाजपेयी, गुलजार जैसे दिग्गज साहित्यकार शामिल हैं, वहीं उनकी कविताएं सीधे आम से जुड़ती हैं. इसीलिए उनके जन्मदिन पर जागरण हिंदी में पढ़िए उनकी यह कविताः बाज़ार में खड़े होकर.

कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के खिलाफ़ देखो
उन चीज़ों के खिलाफ़
जिन्हें पाने के लिए आये हो इस तरफ़
ज़रूरतों की गठरी कन्धे से उतार देखो
कोने में खड़े होकर नकली चमक से सजा
तमाशा-ए-असबाब देखो
बाज़ार आए हो कुछ लेकर ही जाना है
सब कुछ पाने की हड़बड़ी के खिलाफ़ देखो
डंडी मारने वाले का हिसाब और उधार देखो
चैन ख़रीद सको तो ख़रीद लो
बेबसी बेच पाओ तो बेच डालो
किसी की ख़ैर में न सही अपने लिये ही
लेकर हाथ में जलती एक मशाल देखो
कभी बाज़ार में खड़े होकर
बाज़ार के खिलाफ़ देखो.