पटना: लिपि भाषा का लिबास होता है, ये बात भोजपुरी के प्रसिद्ध साहित्यकार जयकांत सिंह 'जयने प्रभा खेतान फाउंडेशन और मसि इंक द्वारा आयोजित आखर कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही। कार्यक्रम की शुरुआत में पुलवामा हमले में शहीद 44 सीआरपीएफ जवानों को श्रद्धांजलि दी गयी।  इसके बाद भोजपुरी के साहित्यकार ब्रज भूषण मिश्र जी और कथाकार-नाटककार हृषिकेश सुलभ ने हिंदी के वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह पर अपने संस्मरण सुना कर उन्हें याद किया और उनकी याद में भी एक मिनट का मौन रखा गया।  भोजपुरी भाषा और साहित्य पर बात करते हुए साहित्यकार जयकांत सिंह 'जय' से ब्रज भूषण मिश्र जी ने भाषा साहित्य के प्रति उनकी रुचि कैसे जाग्रत हुई इसपर सवाल किया। उन्होंने कहाबचपन में अन्तराक्षरी में गीत गाने के क्रम अनायास ही पैरोडी हो जाती थी जिससे लिखने की रुचि जागी। शुरुआती दिनों में तो हिंदी में ही लेखन जारी था बाद में उमेश मिश्र जी के प्रभाव में आकर भोजपुरी लेखन की ओर रुख किया।

भोजपुरी भाषा के स्वरूप पर बात करते हुए उन्होंने कहाजिस भाषा का वैज्ञानिक विमर्श न हो, व्याकरण न हो तब तक उस भाषा का सम्मान नहीं होता है। पटना आकाशवाणी आने के बाद भाषा विज्ञान में रूचि पैदा हुई। भोजपुरी भाषा और बोली के प्रश्न पर डॉ जयकांत ने कहा " जॉर्ज  ग्रियर्सन  ने अपने पुस्तक में भोजपुरी को बोली नहीं भाषा करार दिया, उन्होंने अपने ग्रामर में भोजपुरी शब्दकोश एवं व्याकरण को स्थान दिया। भोजपुरी की ध्वनि,प्रकृति एवं भाव का मागधी एवं स्वरसैनि से कोई संबंध नही है। अक्षर का उच्चारण भोजपुरी में विशिष्ट है। भोजपुरी का व्याकरण अन्य क्षेत्रीय भाषा के व्याकरण से सरल है। व्याकरण उसके लिये बनाई जाती जिसकी वह अपनी मातृभाषा नहीं होती है।

भोजपुरी लिपि के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि लिपि भाषा का लिबास है। भारत में मुख्य रूप से दो ही लिपि थी ब्राह्मी और खरोष्ठी । देवनागरी बाद में आई। देवनागरी संस्कृत की लिपि है न कि हिंदी की। 1873 के बाद हिंदी ने अपना स्वरूप विस्तार किया तो देवनागरी को प्रचलित करना शुरू किया। शेरशाह सूरी के समय तक भोजपुरी का लेखन कैथी लिपि में होता था। 

भोजपुरी गद्य के उद्भव और विकास पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि भाषा का जन्म ही गद्य में ही होता है ।1664 से ही भोजपुरी में गद्य लिखना जारी है 1942 में राहुल सांस्कृत्यायन ने जेल से ही भोजपुरी भाषा में गद्य लिखे। आये दिन भोजपुरी भाषा में किताबें तो आ रही है लेकिन व्यवस्थित ढंग से प्रकाशक और वितरक का घोर अभाव रहता है। अपनी कहानी लेखन की प्रक्रिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि कहानी तो सबके भीतर होती है।मैं अपने मन की ही अभिव्यक्ति को कहानी बना देता हूँ।  इसके बाद उन्होंने अपनी रचनाओं का पाठ किया । कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक आराधना प्रधान ने किया। इस कार्यक्रम में उपन्यासकार रत्नेश्वर सिंह, भगवती प्रसाद, हृषिकेश सुलभ, कौशल महोब्बतपुरी,डॉ. रंजन विकास,अन्विता प्रधान, शाहनवाज खान आदि लोग उपस्थित थे।