नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी महाविद्यालय के 'हिंदी साहित्य परिषद' द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में 'हिंदी और हमारा देश' विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. चन्दन कुमार नेे वक्तव्य दिया.व्याख्यान की शुरुआत में उन्होंने कहा कि हिंदी होना हिन्दू होना नहीं है. उर्दू के शायर 'वली दखिनी' का उल्लेख करते हुए उनका कहना था कि उन्होंने अपने को 'हिंदी' कहा. दखिनी जिन कथाओं का इस्तेमाल करते हैं वह भारतीय समाज की पौराणिक कथाएं हैं. इसी तरह 'मीर तकी मीर' अपनी भाषा को हिंदुस्तानी कहते हैं. हिंदी; फ़ारसी-अरबी बोलने वाले फ़कीरों और संस्कृत पढ़ने-बोलने वाले साधु समाज के बीच ज्ञानार्थ संवाद से निकली हुई भाषा है और यही वह बात है कि 'हस्ती मिटती नहीं हमारी.' उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन बोध, असीम त्याग के ग्रंथ रामायण और असीम लोभ के ग्रंथ महाभारत के बीच सामंजस्य बैठा कर चला है. हिंदी इसी राग की संवाहिका है. 

 

प्रो चन्दन कुमार का कहना था कि हिंदी का हर बड़ा रचनाकार खड़ी बोली क्षेत्र से बाहर का रचनाकार है. उन्होंने पूर्वोत्तर के विभिन्न प्रदेशों में हिंदी की दशा और दिशा पर प्रकाश डाला और बताया कि सिर्फ कैशौर्य भावुकता से काम नहीं चलेगा. हमें अन्य भाषाओं के प्रति तार्किक दृष्टिकोण भी रखना होगा. उनका तर्क था कि हिंदी में राष्ट्र आना भी जरूरी है तभी सही अर्थों में हिंदी राष्ट्रभाषा कहलायेगी. हमने अपने इतिहास में अहिंंदी प्रदेशों के ऐतिहासिक नायकों को जगह बहुत कम दी. अगर आप चाहते हैं कि दुनिया हिंदी को स्वीकार करे तो आपको भी दुनिया के बदलावों को स्वीकार करना होगा. अगर आप भाषाओं, शब्दावलियों  तथा अनुवाद के प्रति तार्किक और उदार दृष्टि नहीं रखेंगे तो हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकेगी। इसलिए हमें भाषा और अनुवाद की सांस्कृतिक प्रक्रिया पर भी ध्यान देना होगा. प्रो चन्दन ने श्रोताओं के समक्ष यह प्रश्न भी खड़ा किया कि क्या शब्दावली की कठिनता को उसके प्रयोग से दूर किया जा सकता है या प्रयोग में आई हुई शब्दावली का समावेश करके हिंदी में बदला जा सकता है? ये आने वाली पीढ़ी को तय करना होगा. अंत में उन्होंने कहा कि हिंदी अब संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो चुकी है. वह हर राज्य में संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग में आ रही है. पूर्वोत्तर की 200 जनजातियाँ एक दूसरे से संपर्क स्थापित करने के लिए हिंदी का प्रयोग कर रही हैं अतः हिंदी भाषा के लिए यह गौरव का क्षण है और उसका भविष्य सकारात्मक है.