वाराणसीः साहित्य, शब्द, संगीत और कैंसर का कोई आपसी तालमेल सीधे नहीं दिखता, पर अच्छा साहित्य, प्रेम के दो शब्द, सुरीला संगीत कैंसर जैसी बीमारी से जूझने में सहायता जरूर करते हैं. इसी सोच से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के महिला महाविद्यालय ने कैंसर सर्वाइवर मीट मनाया. इस कार्यक्रम का अनोखापन यह था कि प्रोफेसर डॉक्टर यू पी शाही ने कैंसर के वैयक्तिक अनुभवों और उदासियों के साथ ही उस जज़्बे को सुना और सुनाया भी, जिसके बल पर वे न केवल कैंसर को हराते गए बल्कि उसके लिए मुक्तिदूत की तरह काम करने के लिए आगे आए और जीवन को सार्थक बनाने वाली राह पकड़ी. डॉ शाही ने ठीक ही कहा कि आप, आप सभी कैंसर के लिए जरूरी जागरूकता के राजदूत हैं. उन्होंने बताया कि मरीज के मनोबल को बनाए रखना समाज की जिम्मेदारी है. साथ ही कैंसर को जल्दी पहचाना जाना जरूरी है.

इस मौक़े पर जयति पाल ने आपबीती साझा करते हुए बड़े सहज भाव से बताया कि अपनी आठ साल की बेटी से उन्हें कैंसर को हराने का बल मिला. उन्होंने कहा कि समाज अनजाने कैंसर पीड़ितों के प्रति निर्मम हो जाता है और यह समझने पर विवश करता है कभी-कभी कि अब हमारा जीना बाक़ी नहीं है. उन्होंने कहा कि जब क़ीमो थेरेपी से मेरे बाल झड़ गए तो मैंने नाक में दोनों ओर नोज़पिन पहन लिया और दक्षिण भारतीय दिखने लगी. मुझे इलाज के लिए प्रधानमंत्री सहायता कोष से 50,000 रुपए मिले, जिसे मैंने अस्पताल को दे दिया कि मुझ जैसे किसी और का इलाज हो सके. अलकबीर, डॉ आत्माप्रसाद, स्मिता भटनागर, शारदा दुबे, जो लोकगीतों के संरक्षण के लिए काम कर रही हैं, आपबीती सुनाई और अपनी कला का प्रदर्शन किया. प्रसिद्ध गायिका सुचरिता गुप्ता जी ने होली गाई, 'एही ठइयां मोतिया हेराइ गइलें' और कबीर भी गाया. कार्यक्रम का संचालन डॉ शबनम खातून ने किया और डॉ निशात अफ़रोज़ ने आभार व्यक्त किया. प्रो चंद्रकला त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि और मेजबानों का स्वागत और सम्मान किया।. इस अवसर पर छात्राओं ने प्रदर्शनी आयोजित की.