नई दिल्लीः समकालीन साहित्य में स्त्री चिन्तन ने अनेक नये आयाम विश्व स्तर पर प्राप्त किये हैं. यह विमर्श मात्र न होकर विचार-विमर्श में रूपान्तरित हो गया है. विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन ने अपने स्टॉल पर  '21वीं शताब्दी में स्त्री' विषय पर महत्त्वपूर्ण विमर्श आयोजित किया. दो सत्रों में क्रमशः '21वीं सदी में स्त्री का आकाश' और 'स्त्री आज़ादी की चुनौतियां और मीडिया' पर विशेष परिचर्चा का आयोजन किया गया. इन सत्रों में वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया, अनामिका, जयंती रंगनाथन और ज्योति चावला ने हिस्सा लिया. ममता कालिया का कहना था 'अब बहुत हो चुकीं घर की बातें, अब अपने अस्तित्व और व्यक्तित्व पर आइए.' विमर्श पर बात करते हुए उन्होंने कहा विमर्श शब्द को पूरी तरह खारिज नहीं कर सकते. पर कई लेखकों ने स्त्री विमर्श को 'दर्जी की तरह रेडी-मेड बना दिया '… आज के समाज में सबसे सुखद ये हुआ है कि स्त्री ने इस विमर्श को पहचाना और उसपर लिखना प्रारम्भ किया. ममता कालिया ने एक नारा दिया, 'बी बोल्ड नॉट कोल्ड. 
कवयित्री अनामिका ने स्त्री विमर्श पर नवीन सन्दर्भ जोड़े. उन्होंने राहुल सांकृत्यायन की पंक्ति उद्धृत की – 'अँगना  तो विदेश भयो'…स्त्री की यह स्थिति समय के साथ धीरे-धीरे टूटी है. सभी विधाओं का स्वरूप बदला है जैसे- फ़िल्म, मीडिया, विज्ञापन में… अनामिका का कहना था 'लगातार पेड़ लगाते रहिये, जलवायु जरूर बदलेगी.' जयंती रंगनाथन ने अपनी अम्मा का उदाहरण देते हुए तीन बातें स्त्री विमर्श को उजागर करते हुए कहीं, पहली विवाह के कारण अपनी पढ़ाई मत छोड़, दूसरी तुम्हें जो चाहिए उसकी राह खुद बनानी होगी. तीसरी एक लड़की 20 मिनट से अधिक रसोईघर में न रुके क्योंकि ऐसी स्त्री अपने बारे में नहीं सोच सकती. इस उदाहरण को उन्होंने अपने जीवन में उतारा और उन्होंने कहा कि ऐसे ही मैंने ये सब पाया. अन्त में जयंती जी ने कहा, 'आज एक मध्यवर्ग की लड़की भी ये सोचने लगी है यदि उसके घर की खिड़की टूटी है तो वो ये सपना देखती है कि सबसे पहले मैं कमा कर ऐसा घर खरीदूंगी जिसमें खिड़की हो. इन बातों में विमर्श के साथ ही बदलाव की झलक भी देखने को मिलती है. ज्योति चावला ने समाज के बदलते हुए सकारात्मक पक्ष सामने रखे जिनके लिए उन्होंने फिल्म व विज्ञापन का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि मुझे आजकल की फिल्मों में ये सबसे अच्छा लगता है कि ज्यादातर अन्त में पिता बेटी से कहता है कि 'तुम जो करना चाहती हो वही करो.' एक स्कूटी के विज्ञापन की पंक्ति 'अब पीछे क्या बैठना' इन सभी बातों में स्त्री विमर्श की स्वतन्त्र झलक देखने को मिलती है.