नई दिल्ली: विश्व पुस्तक मेले में किताबों के लोकार्पण और चर्चाओं की धूम है. खासकर बड़े प्रकाशकों के यहां. रज़ा फाउंडेशन तथा राजकमल प्रकाशन के तत्वधान में रज़ा पुस्तक माला के अंतर्गत राजकमल प्रकाशन की 27 किताबों के साथ कुल 40 किताबों का लोकार्पण हुआ. ये 27 किताबें – उदयेर पथे, कोमल गंधार, बाशो का यात्रा वृत्त, कथा -विमर्श, चार नाटक, भारत का स्वराज्य और गाँधी, उड़िया कविताएँ : मोनालिसा जेना, देवनागरी जगत की दृश्य- संस्कृति, अँधेरे के रंग, सितांशु एशचन्द्र का विचार – गद्य, बावन चिड़ियाँ, गाँधी की मृत्यु, वे भी दिन थे, कृष्णबलदेव वैद का सवांद, शम्सुर्रहमान फारूकी का सवांद, लहजा, रुसी संस्कृति – उद्धभव और विनाश, पर्यारवरण के पाठ, हमसफ़रों के दरमियाँ, चुप्पी की गुहा में शंख की तरह, स्वामीनाथन :एक जीवनी, अनासक आस्तिक, विनोबा के उद्धहरण,गगनवट, अज्ञेय के उद्धरण और महानायकों के महाबाज़ार में है. किताबों के मेले में पाठकों का उत्साह जितना लेखकों से मिलने का होता है, उससे कहीं ज़्यादा खुशी उनकी लेखन दुनिया को नज़दीक से जानकर मिलती है.
राजकमल के स्टॉल पर सुदामा पांडे 'धूमिल' के बेटे रत्नशंकर पांडे ने धूमिल की लेखन-दुनिया से पाठकों एवं श्रोताओं को रूबरू कराया. इस अवसर पर 'धूमिल समग्र' किताब के कवर का लोकार्पण भी हुआ. धूमिल की सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली किताब संसद से सड़कतक पर कवि धूमिल के पुत्र रत्नशंकर पांडे से ओम निश्चल ने बड़ी रोचक बातचीत की. रत्नशंकर पांडे ने कहा, "पाठकों में आज भी धूमिल लोकप्रिय और जिन्दा हैं इसीलिए उनकी मृत्यु के 45 वर्ष बाद भी उनकी किताबों के नए-नए संस्करण छप के आ रहे हैं. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होने वाले धूमिल समग्र उनकी कृतियों को एक जगह इकट्ठा करने की अप्रतिम कोशिश है." लेखक से मिलिए कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति के लोकप्रिय उपन्यास केसर कस्तूरी एवं कुच्ची का क़ानून किताब पर बनास जन के संपादक पल्लव द्वारा बातचीत की गई. उपन्यासों की लोकप्रियता से लेखकों पर होने वाले दवाब पर बोलते हुए उन्होंने कहा, "लोकप्रियता का दवाब तो होता ही है,अगर आपके एक-दो उपन्यास लोकप्रिय हो जाएं तो अगले उपन्यास को लिखते समय आप पर दवाब होता है और यह दवाब डराता भी है, साथ ही प्रेरित भी भी करता है. बस जरूरत है कि हम कुछ अलग और अच्छा लिखें.