नई दिल्लीः वरिष्ठ आलोचक निर्मला जैन की एक किताब 'अनुवाद मीमांसा' के नाम से आई है. यह पुस्तक अनुवाद के रचनात्मक, कलात्मक और प्रविधिगत पहलुओं को विश्लेषित करते हुए उसकी महत्ता और गम्भीरता को बताती है. साधारणत: और इधर ज्यादातर लोग किसी पाठ को एक भाषा से दूसरी भाषा में उल्था करने को ही अनुवाद मान लेते हैं. हिंदी में यह प्रवृत्ति और भी ज्यादा देखने में आती है. बहुत कम ऐसे अनुवादक हैं जो अनुवाद को अगर रचना-कर्म नहीं तो कम से कम एक कौशल का भी दर्जा देते हों.अनुवाद दरअसल क्या है, गद्य और पद्य के अनुवाद में क्या फर्क है; मानविकी और साहित्यिक विषयों का अनुवाद अन्य विषयों के सूचनापरक अनुवाद से किस तरह अलग होता है, उसमें अनुवादक को क्या सावधानी बरतनी होती है; एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में पाठ के भावान्तरण में क्या दिक्कतें आती हैं, लोकभाषा और बोलियों के किसी मानक भाषा में अनुवाद की चुनौतियाँ क्या हैं, और अनुवाद किस तरह सिर्फ पाठ के भाषान्तरण का नहीं, बल्कि भाषा की समृद्धि का भी साधन हो जाता हैइन सब बिन्दुओं पर विचार करते हुए यह पुस्तक अनुवाद के इच्छुक अध्येताओं के लिए एक विस्तृत समझ प्रदान करती है. निर्मला जी की समर्थ भाषा और व्यापक अध्ययन से यह विवेचन और भी बोधक और ग्राह्य हो जाता है. उदाहरणों और उद्धरणों के माध्यम से उन्होंने अपने मन्तव्य को स्पष्ट किया है, जिससे यह पुस्तक अनुवाद का कौशल विकसित करने में सहायक निर्देशिका के साथ-साथ अनुवाद कर्म को लेकर एक विमर्श के स्तर पर पहुंच जाती है.

आलोचक निर्मला जैन ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. और डी.लिट् करने के बाद लेडी श्रीराम कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शिक्षक रहीं. इस बीच उन्होंने आधुनिक हिन्दी काव्य में रूप-विधाएँ, रस-सिद्धान्त और सौन्दर्यशास्त्र, आधुनिक साहित्य : मूल्य और मूल्यांकन, हिन्दी आलोचना का दूसरा पाठ, कथा-समय में तीन हमसफर, दिल्ली : शहर दर शहर, ज़माने में हम, पाश्चात्य साहित्य-चिन्तन, कविता का प्रति-संसार जैसी मौलिक किताबें लिखीं. उनके द्वारा अनूदित पुस्तकों में  'उदात्त के विषय में', 'बांग्ला साहित्य का इतिहास', 'समाजवादी साहित्य : विकास की समस्याएँ', 'भारत की खोज', 'एडविना और नेहरू', 'सच, प्यार और थोड़ी-सी शरारत' प्रमुख हैं. उन्होंने नई समीक्षा के प्रतिमान, साहित्य का समाजशास्त्रीय चिन्तन, महादेवी साहित्य (4 खंड), जैनेन्द्र रचनावली (12 खंड) का संपादन भी किया है. अपने सृजनकर्म के लिए उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार, हरजीमल डालमिया पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (आगरा) का सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान, हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान, साहित्य अकादेमी का अनुवाद पुरस्कार भी मिल चुका है.
पुस्तक : अनुवाद मीमांसा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
लेखक : निर्मला जैन
मूल्य हार्डबाउंड :  225,  पेपरबैक : 99