नई दिल्लीः हमारे समय के जाने माने साहित्यकार, पत्रकार और प्रोफेसर श्याम कश्यप आखिर कैंसर से जंग हार गए. 17 माह 21 दिन की लंबी जद्दोजहद में मौत भारी पड़ी. अपने लेखन के माध्यम से अपनी खास छाप छोड़ने वाले श्याम कश्यप ने हमेशा लोगों को जिंदगी के अच्छे पहलुओं को शान से जीने और खराब समय से लड़ने के लिए प्रेरित किया था. उनकी 4 मेजर सर्जरी हो चुकी थी, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी, पर कब तक जूझते. उनके निधन से सोशल मीडिया पर शोक जाहिर करने वालों का तांता लग गया. जिनमें नेशनल बुक ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रोफेसर बल्देवभाई शर्मा, वरिष्ठ कथाकार उषा किरण खान, बिहार संगीत नाटक अकादमी के सचिव विनोद अनुपम, व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय, लालित्य ललित, साधना अग्रवाल, रजनी गुप्त और ओमप्रकाश तिवारी आदि शामिल हैं.
श्याम कश्यप का जन्म 21 नवंबर, 1948 को पंजाब के नवा शहर में  हुआ था. उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए करने के बाद पत्रकारिता एवं जनसंचार में पीएचडी की और उसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय समेत कई राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे. यही नहीं इस दौरान लगभग 40 साल से अधिक समय तक प्रिंट और टीवी पत्रकारिता में सक्रिय रहे और कई अखबारों और मीडिया संस्थानों में बड़े पदों आर रहे. उन्होंने पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें गेरू से लिखा हुआ नाम, लहू में फंसे शब्द, मुठभेड़, सृजन और संस्कृति, साहित्य की समस्याएं और प्रगतिशील दृष्टिकोण, मार्क्स, एलाइनेशन सिद्धान्त और साहित्य, परसाई रचनावली, हिन्‍दी साहित्य का इतिहास, रास्ता इधर है, स्वाधीनता संग्राम: बदलते परिप्रेक्ष्य, भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद, पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद, भारतीय नवजागरण और यूरोप,पहल का फांसीवाद-विरोधी अंक प्रमुख हैं. जागरण हिंदी की ओर से श्रद्धांजलि.