हिंदी की चर्चित कथाकार शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर, 1923 को गुजरात के राजकोट में हुआ था. उनका असली नाम गौरा पंत था. शिक्षा शांतिनिकेतन में हुई. हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अपनी मजबूत पकड़ के अलावा अपनी विशिष्ट लेखन शैली के चलते वह देश के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखकों में से एक थीं. हिंदी में कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का काफी कुछ श्रेय शिवानी को जाता है. वह अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गईं. वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उन्हें पढ़ने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी. उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था. उन्होंने अपने समय के यथार्थ को बदलने की कोशिश नहीं की. शिवानी की कृतियों के चरित्र चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है. महज 12 वर्ष की उम्र में बालकथा पुस्तिका 'नटखट' में गौरा के नाम से प्रकाशित पहली कहानी से लेकर 21 मार्च, 2003 को निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा. 1951 में धर्मयुग में उनकी लघु कथा 'मैं मुर्गा हूं' प्रकाशित हुई और वह गौरा से शिवानी बन गईं. 'लाल हवेली' उनका पहला उपन्यास था, जिस से उनको काफी शोहरत मिली.

 

शिवानी ने 40 से ज्यादा उपन्यास, अनगिनत लघु कहानियां तथा लेख लिखे. उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में से कुछ हैं, कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश, लाल हवेली, चौदह फेरे, शिवानी की श्रेष्ठ कहानियां, शिवानी की मशहूर कहानियां, झरोखा, मृण्माला की हंसी, अमादेर शांति निकेतन, वातायन, जालक, सुनहुं तात यह अमर कहानी आदि. शिवानी ने दो यात्रा संस्मरण भी लिखे, लंदन प्रवास पर आधारित 'यात्रिकी' तथा रूस प्रवास पर आधारित 'चरेवेति'. जीवन के अवसान में शिवानी ने दो भाग में अपने संस्मरण  लिखे 'स्मृति कलश' तथा 'सोने दे'. उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे. बचपन में राजघरानों तथा समृद्ध घरानों की महिलाओं को करीब से देखने का प्रभाव शिवानी की नायिकाओं के चरित्र में दिखता है. उनकी नायिकाएं गांव की एक सीधी सदी महिला से लेकर डॉक्टर, लेखक, शिक्षक से लेकर राजघरानों, जमींदारों की पत्नियां, बेटियां होती थीं. इन नायिकाओं का चरित्र मजबूत, आत्मनिर्भर, सशक्त, जिद्दी, छली तो है, परंतु कमजोर कभी नहीं. देवदार-चीड़ के वृक्ष, पहाड़ों पर जमी बर्फ, पहाड़ी प्रथाएं, शादी विवाह की रस्में, मान्यताएं यह सब शिवानी की रचनाओं का अभिन्न अंग रहीं. उनकी नायिकाओं ने एक समूची पीढ़ी की नारियों की इच्छा, संवेदना, संघर्ष, मजबूती, सहृदयता, मानवीयता, आशा, आत्मनिर्भरता, साहस और गरिमा को अपनी आवाज दी. हिंदी साहित्य में उनके योगदान के लिए शिवानी को 1979 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था.